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________________ एगुणधीसमो संधि २.५ महेन्द्रकुलको सूने कलंक लगाया है, दुर्धार वैरियोंका निवारण करनेवाले मेरे पुत्रका मुख मैला कर दिया।" यह सुनकर वसन्तमाला कहती है, "स्वप्नमें भी कलंककी कहती हैं, ल मैला कर दियापारियोंका भावना नहीं है घत्ता-यह कंगन, यह परिधान और यह सोनेको माला कुमार पयनंजय की है। नहीं तो कोई परीक्षा कर लो जिससे लोगोंके बीच हम शुद्ध सिद्ध हो जाये" ॥१०॥ _[२] यह सुनकर केतुमती स्वयं काँपती हुई उठी। उसने दोनोंकों कोड़ोंसे बार-बार मारा। "क्या यारके घरमें सोना नहीं है, जो कड़े गढ़माकर हायमें इजा सकता है . और तुम्हारा इतना सौभाग्य कैसे हो सकता है कि कुमार तुम्हें कंगन दे।" उसके कटु वचनोंके प्रहारके डरसे व्याकुल होकर वे दोनों चुप हो गयीं । उसने क्रूर भटको बुलाकर कहा, "घोड़े जोतो और महारथकी पीठपर चढ़ो, कुलक्षणों चन्द्रमाके समान पवित्र कुलको कलंक लगानेवाली इस दुष्टाको महेन्द्रपुरसे बहुत दूर रथसे छोड़ आओ, जिससे इसकी बात मुझ तक न आये।" यह सुनकर उसने शीघ्र रथ जोता, उन दोनोंको चढ़ाकर वह केवल यहाँ गया जहाँके लिए स्वामिनीका आदेश था ॥१-२॥ __ धत्ता--नगरसे दूर बनान्तरमें उसने रोती हुई अंजनाको . उतार दिया, "आदरणीये क्षमा करना, में जाता हूँ" यह कहकर जोरसे रोते हुप. नमस्कार किया ॥१०॥ [३]"क्रूर वीरके वापस होनेपर सूरज डूब गया, मानो वह अंजनाका दुःख सहन नहीं कर पा रहा था । भीषण रातमें अटवी और भी भयानक थी, जैसे खाती हुई, लोलती हुई, ऊपर, गिरती हुई, भंगारीके शब्दोंसे डराती हुई, सियारांके
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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