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परमचरित
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तो दुम्सु दक्खु पुम्मिय-मणेण। किड पाणिग्गहाणु पहजणेण ॥१॥ थिउ वारह वरिसई परिहरेवि । दि सुभइ भालवह सुइणवे(?)वि॥२॥ घारे चि ण जाइ ण (?) जेम जेम । खिज्जइ मिज्जा पुणु तेम तेम ॥३॥ उज्रन्त उस विरहाणलेण । णं बुज्झायह अंसुअ-जलेपण ॥४|| परिवार-भित्ति-चित्ताई जाई। णीसास-भूम-मलियाई ताई ॥५॥ दिल्लई आहरणई परियन्ति । णं गेहखण्ड-रण्दइँ पडन्ति ॥६॥ गउ रुहिरु णवर घिउ भइणु भस्थि ! णउ णावह जीषिउ अस्थि गस्थि ॥७॥ महिं तेहएँ का दसाणणेण । सुरवर-कुश पञ्चाणणेण ॥४॥
घत्ता जो दुम्मुहु दूर विसनिय सो पायउ कप्प-विवज्जियउ । हय समर भरि रहबरें चडिउ रणे रावणु वरुणही मम्मिजिउ ॥९॥
[..] एस्थस्तर वरुणहों णदणेहि। समरगणे बाहिय-सन्दर्णेहि ॥ १H राजीव-पुण्डरीएहि पवर। रघर-दूसण पावि धरिय गवर ॥२॥ गय पवण-गमण केण विदिट्ट । सहुँ बरुणे जल-युग्गमें पइट्स ॥३॥ 'सालयहुँ म होसह कहि मि घाउ' । उम्मेद्ध वि गड पगिया-राउ ॥४॥ णीसेस-दीव-दीवन्तराहुँ। लहु लेह दिपण विज्जाहराहे ॥५॥ अवरेक्कु रपणे दुज्जयासु। पवित लेहु पवणक्षया ॥६॥ संपेक्सवि तेण वि या किउ खेउ । णीसस्टि स-साहशु पाउ-बेउ ॥७॥ थिय मम्जण कामु कवि वार। णिन्ममिय 'भोसरु बुट्ठ दारें |