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पउमचरित
पिठ
कमल
वि ॥३
लड् षट्ट गिरि कलासु णेमि ॥ ७ ॥
बरु
से होस को नि ते '
॥ ८ ॥
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शिम्पुण रमति धण
उपण चिन्त 'कहीं कण्ण देमि । बिज्जाहर सय मिळम्ति जेथु ।
धसा
गड एम भणेवि पहु पब्वयों जिण अट्टाहिए अहावयहाँ । आश्रासि परसेंहिं गोयड हिं णं वारायणु मन्दर त हिं ॥९॥
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सहुँ कंडसइऍ रविपुर आउ ॥१॥
एसविता पल्हाय-राउ | स विमाणुस साहस-परिवारु । अष्णु वि तहि पचणञ्जय कुमारु ॥ २ ॥ णं वन्दहत्तिएँ इन्दु अड् ॥३॥ ते ते विज्जाहर मिलिय सच्च ॥४॥ किय हवण पुज्ज लोक्कणा हें || ५|| । मित्तष्क्ष्य परोप्यरु हुआ ताहँ ॥ ६॥ 'तरणिय कष्ण महु तणउ पुत्तु ॥७॥ तं शिवि ते विदिष्ण घाय ॥ ८ ॥ मटियाँ मुहइँ खल-दुज्जणाएँ ॥९॥
एक्कत दूसावासु लड्ड ।
अवर वि जे जे आसगण-मन्त्र । पहिलाएँ फग्गुणणन्दोसराहें । दि बीयविह्निमि नराहिवाहँ पहाएँ कवि तु । किण कीरह पाणिगहणु राय' । परिओसु पवद्विड सज्जा हूँ ।
'चतु अञ्जण बाउकुमारु वह' 'लक्ष्य वासरें पाणिग्गणु
धूमाइ त्रष्ठइ धगधगद् चितु चन्दि
घत्ता
घोसेध्पिणु णयमाणन्दयस् । राय परवड वियय - नियय भवणु १० ॥
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एत्यन्तरें दुज्जड दुष्णिदारु ।
मयणाउरु पत्रणञ्जय कुमारु ॥१॥
उ विसहइ सय दिवसु एन्तु | अणि शम्पन्तु ॥२॥
चन्दु घन्दणु जलधु।
मन्दिर अन्त पलितु ॥३॥ कंप्पूर- कमलदन सेज्ज - मध्वु [1811
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