SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 320
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८८ चस्व-सहासई हवि पक्वालड। जोपह करेउ मियडू गिरन्सरु । ममरराउ मजणउ भरावर । सं पडिवाणु सन्चु सहसारें। कोसु असेसु कुवेत णिहालउ ॥६॥ सीयल गइयले सबउ दिवायरू ॥७॥ अण्णु पि धणेहिं छहउ देवावउ' १८॥ मुक्कु सक्कलकालकारें ॥५॥ पत्ता णिय-रज्जु विवज्जेंवि गउ पन्बजेंवि सासयपुरहों सहसणघणु । जय-सिरि-बहु मण्ड वि थिउ अवरुणवि स ( भु य-फकिहहिं दहवषणु।१० इय चारु-पउमचरिए धणअयासिय-समम्भुएय-कए । जाणारा व ण वि जय' समारहम इमं पम्वं ।। [१८. अट्ठारहमो संधि ] रण माशु म वि पुरन्दरही परियच वि सिहर, मन्दरही। भाषा वि पद्धीवउ जाम पहु ताणन्तरे दिटु भणन्तरहु ॥ [ ] पेक्वेरिएणु गिरि-कवण-सुमन्दु । जिण-वन्दण-दूरुच्छलिय-सदु ॥३॥ सुरवर-सब-सेव-करावणेण । मारिधि पपुच्छिउ रावणेण ॥२॥ 'मह-मक्षण-भुवणुच्छलिय-णाम । उहु कलयलु सुम्मद का माम' ॥३॥ त णिसुणवि पभणह समर-भीर। 'पहु जाइ णामेण अणन्तवीर ॥॥ दसरह-माया श्रणरण्ण-जाउ । सहसयर-सोहें तवसि जाउ ||५|| उप्पण्णउ पयहाँ पत्थु णाणु। उह दीसह देवागमु स-जाणु' ।।
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy