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पउमरिज
[१५] उपसमिप हुआसणे वयणमासुरेणं ।
बहल-तमोह-पहरणं पेसिनं सुरेणं ॥१॥ किउ श्रन्धारण रणङ्गणु। कि पि ण देखाइ णिसियर-साहणु॥२॥ जिम्मइ अङ्ग चलह णिरायइ । सुभइ अचेयणु ओसुविणायइ ॥३॥ विखें वि णिय-पलु भोणल्लन्तउ । मेलिउ दिणयात्थु पजकन्तः ।।या अमराहिण राहु-वर-पहरण। णाग-पास सर मुबह दसागणु ।।५।। पषर-भुअङ्ग-सहासेंहि दट्टर। मुस्वल पाण लएवि पण?उ ॥६॥ पारुदत्थु बासवेण निमिउ । विसहर-सरवर-जालु परजिउ ॥७॥ षगउड-पवणन्दोलिय मेइणि | डोसा-रूढी णं बर-कामिणि ॥ पक्ष-पषण-पडिपहय-महीहर। पञ्चाविय स-दिसिवह स-सायर ॥९॥
पत्ता
मलें वि रिउ-घायणु सरु णारायणु विजगविहूसणं गएँ चदिउ । जेत्तहें अइरावणु सेत्तहँ रावणु जावि इन्दहों अमिडिड ॥१०॥
[१६] मत्त गहन्द दोषि उम्भिण्ण-कसण-देहा 1
णं गजान्त भन्त सम-उत्थान्त मेहा || परोवरस्स पत्तया। मयम्घु-सित्त-गत्तया ॥२॥ थिोर थोर-कन्भरा। पलोह-दाम-णिजारा ॥ स-सीयर व पाउसा । मयम्ध मुक-भसा ॥३॥ विसाक-कुम्भमण्डला। णिवड-दन्त-उजला ॥५॥ अथक-कण्ण-चामस । णिवारियालि-गोयरा ॥६॥ समुद्ध-सुण्ड-भीसणा। विसह-घण्ट-णोसणा ||७॥ मणोज-रोज पन्तिणो। भमन्ति के वि दन्सिणो ॥6॥