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________________ २३५ पडमचरित ताणग्तरें सूरह णिसुणियई। पणवेप्पिणु मिश्चदि पिसुणियई ॥७॥ 'परमेसर पारस्कर परिउ । छह पहरणु समरु समावडिउ' |॥८॥ धत्ता सं णिसुप्पिणु धणु करें लेप्पिणु णिसियर-पवर-समूहहाँ। थिउ समुहागा प पाणण णाई महा-य-जूहों ॥९॥ [२] जं झुज्म-सज्नु थिट देवि धणु । तस्ठि अखेसु त्रि जुत्रायणु ॥॥ मम्मीसित राई दुग्ण-मणु । किं पाणहों या सहसकिरण ॥२॥ एक्कक्कहीं एक्कक्कर में करु। परिरक्वइ जह तो कवणु गुरु ॥३॥ भच्छहाँ भुव-मण्ड वाइसरवि। जिह करिणिउ गिरि-गुह पइसरवि ॥४ मा दलमि कुम्भि-कुम्मस्थलाई। होसन्ति कुटुम्विहि उपरवल हैं ॥५॥ जा खणमि विसाणइ पवराई । होसन्ति पयहाँ पञ्चवराई ॥६॥ जा कमि करि-सिर-मोतियहूँ। होसन्ति तुम्ह हारतियई ॥७॥ जा काडमि फरहरन्त-धयई। होसन्ति देणि-वन्धण-समई ॥८॥ पत्ता . एम मणेपिणु तं धीरेपिणु णरवइ रहबर मडियट । वहकरुणण (1)xx विणु अहणण णाई दियावह परियउ॥९॥ प्रस्त रे आरोडिउ भ. हि णं केसरि मत्त-हस्थि-होहिं ॥१॥ सो एक्कु अणन्तड जद वि बलु । पप्फुल्ल तो वि तहाँ मुह-कमलु॥२॥ जं लइड भरखते सहसयरु । संघविउ परोप्पा सुर-पकरु ॥३॥ 'अहाँ भहो भणीइ काहि किय। एक्कु ऐ वतु अण्णु थि गयणे थियार
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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