________________
पउमचरिउ
२३१
परिकएँ सजण चिताएँ व । दुई सुकलताई व वारि वमस्ति नाई सिरिणासहि संहि पुत्र जलु यम्नंवि शुक्क
घत्ता
तं निखुणेपिणु 'हेड' भणेष्विणु असिव स है सु घेण पकतिज | सहइ समुज्जलु ससि-कर- मिम्मल णं पक्ष- दाण- फलु वहिंउ || ९ || चउमुहएवं च गोगगह कहाऍ । अज चि करणो ण पावन्ति ।।
जल-कीलाएँ सयम्भू भदं (हं) च मच्छवेहे
वहूँ अस्थत विसाएँ व १५ ॥ - विताएँ व ॥ ३६॥ उस्कर चरण-कण्ण-णपणासेहिं ॥ संग पुज रेलेन्तु पशुकन ॥८
[ १५. पण्णरहमो संधि ]
दाण-मयन्र्घेण गय-गन्धण जग कम्पाणु रणे रावणु
जेम महम्दु त्रियउ | सहस्रकिरण अभिउ ॥१॥
[,]
आसु दिष्णु यि किक्क रहें । मारिच-मयहुँ सुब-पारणहुँ । हम-हस्थ-यहस्थ- विहीर हुँ । ससिकर-सुग्गीध गील-जल हुँ । उद्धाय मध्र-मतिय-कर |
वज्जोय र-मयर-महोय रहुँ ॥१॥ इन्द्रइकुमार-घणवाणहुँ ॥ २ ॥ विष्टि - कुम्भयपण खर दूसणहुँ ॥ ३ ॥ अवरहु भि अणिट्टिय भुय वरूहूँ ॥४॥ मीसावण-पण-नियर-घर ॥५॥
सहसयरु विजुतहिं परिथरि । शुद्ध जेदुद्ध सकिल हो नीसरिज ॥ ॥ ॥