________________
पउमचरिड 'मई सरिसउ अगणु जगें अयाणु । जो करमि केलि सोहं समाणु ॥ मई सरिसउ अण्णु ण मन्द-मगा। जो गुरुहु मि करमि महोबसग्गु ॥९||
घत्ता
जं सिद्धषण-शाहु मुएपिणु तं सम्प्रत्त-महमहों
अण्णहों णमिउ ण सिर-कमलु । लद्ध देव पई परम-फलु' ॥१०॥
[ २ ]
दुबई पुणरवि धारवार पोमावि दसविह-धम्मवालयं ।
गड तेत्त हें तुरन्तु तं जेत्तहें मरहाहिब-जिणालयं ॥१॥ कइलास-कोटि-कम्पावणेण । किय पुज जिणिन्दही रावणेण ॥९॥ फल-फुल्ल-समद्धि-वणासह च । सावय-परियरिय महादई म्ब ॥॥ अहिणष-उच्चाव विलासिणि व्य। पर दड्द-धूव खल-कुट्टणि व्व ॥॥ बहु-दीघ समुहन्तर-महि स्व। पेल्लिय-दलि पारायण-मह च ॥५॥ घण्टारक-मुहलिय गय-घड छ। मणि-स्यण-समुज्जल-अहि-फड म्याद पहाणद वेस के पावलि । गन्धुक्कड कुसुमिय पाउलि च ॥७॥ सं पुज्ज करें वि आइत्तु गेउ। मुच्छण-कम-कम्प-विगाम-भेड ॥4॥ सर-सज्ज-रिसहभान्धार-बाहु ।। मज्झिम-पग-धइवय-णिसाहु ।।९।।
--
-
माहुरेण धिरेण पलोष गायह गन्धयु मोहरु
पत्ता जण-वसियरण-समस्थएँग । सवणु रावणहस्थऍण ||३०||