________________
पउमपरित
गड एम मणेपिणु सुरिउ सहि| गुरु गयणचन्तु णामेण अहि ॥६॥ सब चरणु कइउ सरगय-मणण। उप्पण्णउ रिडि तक्षणेण ॥ आदि सासु इन्धिा-। गर तिथुधु कहलास-गिरि ||4||
धत्ता उप्परि चहि सही माययाही पश्च-महावय-धारउ । भचावण-सिकह सासय-इसहँ गं थिङ बालि भद्वारा ॥९॥
[ २] एत सिरियह मइणि तहाँ। सुग्गी दिण्ण दसाणणही ॥१॥ घोसाविउ गउ पका-पयरें। पल-पील विसजिय किक-पुरै ॥२॥ सुर धुष-महएविहें संथनिउ । ससिकिरणु णिपद्ध-रले थपिड ॥३॥ साई अवसर उत्तर-सेवि-विहु । विनाहरु णामें अलणसिहु ॥३॥ तहो धीय सुमार-णाम गरेंग। मग्गिगा दससयगड-वरेण ॥५॥ गुरुवपणे सासु ण पट्टविय । सुरंगोषों णवर परिविय ।।२।। परिणेवि कण्ण णिय जियय-पुरु। दससयगइ वि विरहग्गिा गुरु ॥७॥ पजका उपायह कलमलाउ ! उपहउ प सुहाइ सोमकल ॥४॥ उम्भन्तर कहि मि पाइट वणु। साह विज्ञ थिउ एक-मणु ॥१॥
घत्ता
ताइ मि धण-पउरें किक्किन्ध-पुरे अन्य घड्नम्तई । थियइ स्यण [] गई गिण वि जणाई रज्नु स ई भुञ्जन्तई ॥१०॥