SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 229
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बारहमो संधि घत्ता-सुभट केवल इस कारणसे, आकाश मार्गसे वहाँ पहुँचे कि कहीं हमारे पैरोंके निष्ठुर भारसे बेचारी धरती ध्वस्त न हो जाये ॥५॥ [4] यहाँ भी समरमें अजेय, राजाओंकी चौदह अक्षौहिणी सेनाएँ, बालीके ससद्ध होते ही इस प्रकार निकल पड़ी, जिस प्रकार मर्यादाविहीन समुद्र हो । अतुलबल नल और नील दोनों ही प्रणाम करके अग्रिम सेनाओंमें स्थित हो गये। उन्होंने युद्ध में अपनी अचल न्यूह रचना की। पहले पैदल सेना स्थित थी। उसके पीछे हिनहिनाते हुए समद घोड़े थे जो अपने तेज खुरोंसे धरती खोद रहे थे। फिर शैलशिखराको नाति रथ थे। फिर मदसे विकलांग गजघटा थी। फिर राजा श्रेष्ठ तलवार अपने हाथमें लिये स्थित था। इतने में निशाचर निकट आये । जचतक वे लोग युद्ध में भिड़े या न भिड़ें कि इतने में दोनोंके बीच विपुलमति मन्त्री आया ॥१-८॥ पत्ता-उसने कहा, "युद्धके इच्छा रखनेवाले, आप दोनों (बाली और रावण) इस बातका विचार क्यों नहीं करते कि स्वजनोंका क्षय हो जानेपर फिर राज्य किसपर करोगे" ॥९॥ [९] जो कीर्तिधवल और श्रीकण्ठने किया, जिसे किष्किन्ध और सुकेशीने आगे बढ़ाया, उस स्नेहके तरको नष्ट मत करो। यदि आप अपने रोपके भारको धारण करने में असमर्थ हैं, तो आपसमें लड़ लो, जो जीतेगा उसकी जय-जयकार होगी।" यह सुनकर बाली कहता है कि हे लंकाधिपति, यह सुन्दर कहता है । क्षय, तुम्हारा या मेरा, दोनोंमें से एकका हो ? जिससे ध्रुवा या मन्दोदरी विधवा हो, बहुत-से जीवोंको मारने या स्वजन बन्धुओंके पतनसे क्या? इसलिए यदि कौशल है, तो प्रहार करो, देखें तुम्हारी विद्याओंका बल !" यह
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy