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________________ पउमचरित दुसरेके लिए विरक्ति भक्तिका । एक बात और, तुलसी के राम समस्त लीलाएं करते हुए भी, व्यक्तिगत रूपसे उनमें तटस्थ हैं, जबकि स्वयम्भूके राम जीवनकी प्रवृत्ति योंमें सक्रिय भाग लेते हुए भी उनमें आसक्त है, वह इस आसक्तिको नहीं छिपाते । लेकिन जीवन के अन्तिम क्षणोंमें विरक्तिको अपना लेते हैं । वस्तुतः इसमें दो भिन्न दार्शनिक दृष्टिकोणोंको दो भिन्न परिणतियाँ है जो जीवनकी पूर्णता और सार्थकाताके लिए प्रवृत्ति और निर्वृत्तिका समुचित समन्वय आवश्यक मानती हैं। चरितकाव्य-घटनाकाव्य-महाकाव्य काव्य-प्रबन्ध कायके मुख्य दो भेद हैं-चरितकाव्य और घटनाकाक्य । घटनाकाव्यमें यद्यपि घटना मुख्य होती है, परन्तु उसमें वर्णनात्मकता अधिक रहती है। इसलिए कुछ पण्डित घटनाकाव्यको नात्मक मानन में हैं। या पारत कायम भी होते है। परन्तु उसमें किसी पौराणिक या लौकिक व्यक्तिके परितका एक क्रममें वर्णन होता है। जहां तक अपनशमें उपलब्ध परितकाव्योंका मम्बन्ध है, वे अधिकतर पौराणिक या धार्मिक व्यक्तियोंके जोवनवृत्तको आधार लेकर चलते हैं। चरितका व्यके दो भेद किये जा सकते हैं। धार्मिक चरित. काव्य और रोमांचक चरित काव्य । परन्तु यह विभाजन भी अधिक ठोस नहीं है । क्योंकि चरितकाव्यमें भी रोमांचकता रहती है, यीक इसी प्रकार रोमांचककाव्यों में धार्मिकताका पुट रहता है। शृंगार और शौर्य की प्रवृत्ति दोनों में रहती है। कुछ हिन्दी आलोचक, 'चरितकाव्य' को परित काव्य और घटनाकाव्यको महाकाव्य मानते हैं। 'रामचरितमानस' और 'पद्मावत' को महाकाब्य सिद्ध करने के लिए, उन्हें घटनाकान्य मानते हैं, अधकि वे विशुद्ध चरितकाव्य है । मान सके चरितकाव्य होने में सन्देह नहीं, परन्तु पद्मावत भी चरितकाव्यको कोटिमें धाता है । पद्मावतमें मुख्य-रू. पर्स रसन मनका वह चरित बणित है जा पद्मावती के पानसे सम्बद्ध है। मेरे विचारमें चरितकाम्य भी घटनाकाव्य हो सकता है। महाकाव्मके C
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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