________________
पडमचरित
तुम्हें हिं मालि काले भुत्ती। मण्डु मातु जिह पर-कुलउत्ती ५५।। ताह में पड़ जुत्तु पहरेवड़। पद्ध उक्वन्धं पई जाएवउ ||५|| देहि ताम ओशामिय-छायहाँ। सुरसंगीय-णयह जमरायहाँ॥६॥ भुन सालि में मय-मारिच्चे हि' । एम भणेति णियतिर मिहि ॥७॥ दामहो वि जमउरि उराश्यहाँ । किमिन्धरि देवि सूरस्यहाँ ॥ ६॥
पत्ता
गउ सहें सबङमुहर शायदवाहण-बंस-दलणं
णहें सरगु त्रिमाणु मणोहरउ । काले बद्धिउ दाहरउ' ॥२॥
[१] मीमण-मयरहरोवरि जन्ते। उवसिहामणि-काया-मन्तं ॥॥ परिपुच्छिइ सुमालि विष्णुप्तह। कि णहयालु' 'णं प रयणाय ॥२॥ 'किं तमु किं तमालतस-पतिद' । . ' ण बन्दगान-मणि-कन्तिउ' ॥६॥ 'कि एयाउ कौर-रिकोलिर'। 'णं णं मरगय-पवणालोलिल' ॥४॥ 'कि महियले पहिग्रई रवि-किरणई । 'णं णं सूरकन्ति-मणि-श्यणहूँ' ॥५॥ 'किं गय घडर गिल निल्लोलर' | 'गं को जमणिहि-जल-कलोलज'॥६॥ 'स-यवसाय जाय किं माहिहर'। 'णं णं परिममलित गल जालय ॥७॥ एम चरन्त पस लंकाउरि । जा तिकूल-महिहर-सिहरोवरि ३६ ॥ जणु पोसरिज सम्यु परिश्रीसें। दियघर-पणइ-सूर-णिग्घोसें ॥९॥ णन्द-बद्ध-जय-सह-पत्तिहिं। सेसा-अग्धपत-जल-अतिहि ॥१०॥
लाहिवह पहल पुरे जिह मुरबह सुरवर-पुरिहि
परिव पष्ट अहिलेड किंउ । तिस रज्जु स ई सु अन्तु घिउ।।११।।