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पउमचरिउ
संणिसुविशु इरिव करू |
जर्मेण मुक्कु र दण्डु मयंकरु ॥६॥ एन्तु पछिष्णु उसासें ॥७॥
धाउ धगधगतु आयातें |
सम-सय-खण्ड करेष्पिणु पाटि । गाइँ क्रियन्त महफर साहिल 114 ||
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धहरु केत्रि तुरन्तऍण सं पि णिचारिव रावण
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विदम्स
पुणु वि पृणुचि विणिवारिय घणयहीँ रयणासच तणयों ॥ १॥ दिट्टिमुट्ठि-संघाणु ण णादड् । णवर सिलीमुह धोरण भावइ ॥ २१ ॥ | जानें जाणें हुए ह गय नायवरे। उन्हें छत भएँ धर्म रहें रहवरें || ३ || भ भ म म करें करलें । चलणं चणं सिरें सिरेंडर वस्य ॥४ भरिय वाण कविय साहणु पढ्छु जमो बि बिहरु विपहरणु ॥ ५ ॥ सरहों हरिणु जे उदाइ । निविदाहिण- सेवि पराइ ॥ ६ ॥ सहि रहर पुरवर-सारहों इन्दों कहिउ अष्णु सहसा रहीं ॥७॥ *सुरवड़ कई अपपल पहन्तशु | अहो कहीं चि समप्पि जमसणु ॥ ४ ॥
मालि माहिं पोर हि लक सुज्य सुराहिचह
घत्ता
सर-जाल विसजिउ भासुरउ । जामाएँ जिस खलु सासुर ||२९||
संविवि अम-वयणु अमुन्दरु
अग्ग सामन्ति थिट भेसह सुहुँ पुछावड़ नाइँ भयाण ।
'
घन्ता
दरिसाक्षित कह विष्ण महु म.णु । धणपुण वि इयउ तह चरणु ॥९॥
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किर णिनाइ सणहें सि पुरन्दरु ॥19॥ 'जो पहु सो सयलाई गवेमइ || २ | सो जे कमागड लक राम ॥३॥