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________________ १८० हरिस- रण करवियर तहिं रावण हावऍण पवमचरित घता चन्दहासु कर करें षि महि कपिणु जयरहरु [ 4 ] तिजगविणु लामु गासिउ | मित सहसा करि-कह-अणुराहट । पहर-विहरु रुहिरोह्लिय-मत्तड । 'देव-देव किम्पिों व हिं । मिठ तर्हि सिमिरु जेरथु आवासिय ॥१ सहिँ अवसरें भनु पशु पराइ ॥२॥ णरवद्द तेण वेषि विष्णत्तय ॥३॥ सच-फलिह-सूल-हक कण हिं ॥४॥ सिरस सुसविणाराहि । वह कोन्त-गय- मोग्गर- भाएँ [हिं ॥५॥ घरेंविण सहित विहि एक वि ॥६॥ कवि कह विउ मेलिड पार्णे हि ॥ ७ ॥ हय संगाम मेरि सादर ॥८॥ जमुआरोडिज भग्गा सेण वि । पचेल्स जिल्लरिय वाणेंहि । किसुणेवि कुछ रक् कीव-दगि पलित्तु पधाइड । पेक्ष सत्त नरम अ-रउरव । पेक्खइ मद्द वतरणि वहन्ती । ऐक्खड़ गय-पय- पेलिजन्तई । पेक्ष र मिहुइँ कन्दन्तहूँ । पेक्ख अण्ण-जीव विजतहूँ । वीर रसु सो गाहिं जो जेण मणें मावियठ । णाविय ॥ ९॥ प्रत्ता स विमाणु आयासह [] वलु संवलियउ । उत्थलियउ ॥ ९ ॥ णिविर्से से जम-णय परा ॥१॥ उट्टिय बारवार हाहार ॥२॥ रस-वस-सोणिय सलिल वती ॥३॥ सुहृद-सिरहँ टसत्ति मिजन्त हूँ ॥४॥ सम्वलि-रुख वराविखन्त ॥५॥ - पन्ति ॥५॥
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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