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पउमचरित
'मालिहें पासिउ एयाहों मस्टु । उक्खमधु देवि भण्णु वि पयट्टु' ॥६॥ सं वयणु सुणवि सण्णहें वि जक्खु ! जोसरिट जाई सई दससमक्ख ॥७॥ थिउ उरवि गिरि-अक्ण्वे जाम । सं जाउहाण-वलु हुक्कु ताम ॥८॥
पत्ता हय समर-तूर किय-फलयलई भमरिस-रहस-विसङ्ग । भइसवण-दखाणण-साधणइँ विपिण वि रणे अम्भिई ॥९॥
..] कण वि सुन्दर सु-रमण सु-मेव । आलिङ्गिय गय-घह बेस जेव ॥१॥ स यि कासु पि उश्या वेझ देह । णं विवरिय-सुरएं हियउ लेइ ॥२॥ केण घि आवाहिउ मण्डलमा। करि-सिम पिववि महिहि ला॥३॥ रण बि कासु वि गय-घाउ दिपणु । किउ सरहु स-सारहिं चुपण चुग्णा ॥ केण वि कासु वि उरु सरहिं मरिउ । लक्षिजहणं रोमम्बु धरित ||५|| केण वि कासु त्रि रण मुख वा । थिउ हियएँ धरवि गं पिसुण-व एल्धन्तरें धणएं ण किउ खेउ । हकारिउ माह कइ कसेउ ॥७॥ 'लइ नुज्य जुञ्ज पत्तहड काल। दुको सि सीह-दन्तरालु' ॥८॥
घत्ता तं पिसुत्रि रावणु कड्य-मणु बइसवणही आलग्गः । कह उम्भवि गजेवि पुलगुले विगं गयवरही महग्गउ ॥९॥
[1] सम्बुहर-लील-संदसिणे । मर-मण्डउ किउ तहि दस-सिरेण॥३॥ पिणिदारिंच दिणयर-कर-णिहाउ । गिति दिवसुकि ति सन्देहु जाउ ॥२॥