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पउमचरित
मम्भोस वि मन्दोवरि मपण। चन्दणहि पपुच्छिय मय-गएण ।।३।। 'नाइँ भवानि नोड । विगम्भर र फेस व णवलु' ५॥ स वि पचविय 'कि ण मुणिड पयाउ । दहगोष-कुमारहों पहु पहाड' ॥३॥ सं णिसुर्णेवि सया चि पुकत्यङ्ग । अपरोप्पर मुहर णिए लग ॥॥ एत्यन्तरें किङ्कर-सब-सहाउ। मय-सावासु णियन्तु भाउ ॥५॥ 'पहुं को सावासिङ समभोग। पणदेवि कहिउ के चि परेण ॥३॥ 'विजाहर मम-मारिकच के वि। तुम्ह हैं मुहवैक्या माय वे वि' ॥७॥ सं णिसुणे वि जिगवर-मवणु हक्क । परियोनि बन्द वि ताम-मुक्कु ॥॥
घसा सहसत्ति दिठु मन्दोवरिए दिट्टिएँ चल-मउंहालए । दूरहों जें समाहड पछयले ण णीसप्पक-माएं ॥५॥
[३] दोसह नेण वि सहसत्ति वाळ । णं भसले अहिणा-कुसुम-माल ॥१॥ दीसन्ति चकण-णेउर रसम्स । णं मछुर-राव पन्दिण पढन्त ॥२॥ घोसइ णियम्नु मेहल-समागु । कामएव-भस्थाण-मणु ॥३॥ दोसइ रोमाचशि छुसु चडन्ति । परं कसण-बाल-सप्पिणि छलन्ति । दीसन्ति सिहिण उवलोह देत । णं उरमल भिन्नै वि हरिय-दस्त |॥५॥ दीसह पप्फुस्लिाय चयण-कमलु । पीसासामोयासन-मसलु ।।६।। दीसह सुमासु भाभ-सुबन्धु । णं णयण-अधडौं किंड सेउ-बन्धु ॥५॥ दोसा णिवाल सिर-बिहुर-कपा । ससि-विम्वु व णव-जाहर-णिनण्णु ॥