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पङमचरिड
धत्ता पेक्वप्पिणु परिओसिय-मणेण णिय तणय सुमालिहणन्दणे । रोमचाणन्द-गेह-जुऍहिं चुम्बेथि अवगूड स ई भु बेहि ॥९॥
[१०. दसमो संधि ] साहिउ छट्टीववासु करवि वणीलुप्पल-णपणेण । सुन्दरु सु-सु सुलत्तु जिह बन्दहासु दहवयणण ।।१।।
[ ] दससिरु विजा-दुससय-णिवासु। साहप्पिणु दूसहु घम्दहासु ॥१॥ गउ वन्दण-इत्तिा मेरु जाम। संपाइय मय-मारिच ताम ॥२॥ मन्ट्रोवरि पचर-कुमारि लेवि। रावणहाँ जे भवाणु पट्ट घेवि ॥३॥ चन्दहि गिहालिय तेहि तेस्थु । 'परमेसरि गउ दहवयणु केस्थु' ||४|| सं णिसुणवि णयणाणन्दोएँ। घुबह रयणासवान्दणीएँ । ॥५॥ 'छुछ छुद्ध साहेप्पिणु चन्दहामु । गउ अहिमुहु मेरु-महहिरासु ॥६॥ एति आवह बहसरहु ताम'। तं लेवि लिमित्तु णिविट जाम ॥॥ वेताल' महि कम्पणहँ लम्ग। संचलिय असेस वि कउद-मग ॥६॥
घन्ता
खणे अन्धारउ खण चन्दिणड खणं धाराहरू परिसइ । विजड जोक्षन्तउ दहचयशु णं माहेन्दु पदरिसइ ।।९।।