SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पउमरित जं परिहिउ कण्ठ पावणेग। किट बद्धावणउ सु-परियणेण ॥१॥ स्यणासउ कति मायदे। आणन्दे कहि मि ण माइयई ॥२॥ णिसुणेप्पिणु भाइउ उम्छु । किष्किन्धु.स-कन्तर सरल ॥३॥ लयले हिं णिहालिद साह रशु । दह-गीउम्मीलिय-दह-अयणु ॥५॥ परिचिन्तिउ 'णउ सामग्णु णरु । एहु होइ पिरुत्तर चकहरु ॥५|| एयहाँ पासित रज्जु वि विउलु। कह-जाडहाण-बलु रणे अतुल || एयद्दों पासि सुरवइ खाउ । सा-वरुण-कुवेरह पाहि जउ' ||| घत्ता अपणेक-दिवस गम्जन्तु कि पव-पाउ जहर विन्दु जिह । जहें जन्तउ परवेवि बहसवणु पुणु पुष्टिका जणणि 'गुहु कवाणु' ।।८।। त मिसुर्णेवि मकिय-णयगियएँ पजरिउ समारगर-चयणिपए ॥१॥ 'कसिकि जगेरि एयहाँ सणिय । पहिलारी बहिणि मजुत्तणिय ॥२॥ बीसावसु बिज्जाहरु जणणु। हु भाइ तुहारउ वइसवणु ॥३।। वइरिहि मिर्कवि मुह मलिण किय । मायरिय कमागय बाहिय ||३|| एयहाँ उहालेंवि जेमि तिय । कइय? माणेनहुँ राय-सिय ॥५॥ रतुप्पल-मालोयणे । णिकमच्छिय जणणि विहीसणेण ॥६॥ 'वड्सवणही केरी कवण सिय । पहावयणहों णोक्खी का वि किय ॥०॥ पंकसहि दिवसहि श्रीवहिं। आऍहि अम्हारिस-देचऍहि ॥ पत्ता जम-खन्द-कुवेर-पुरन्दर हिँ रवि-वरुण-पवण-सिहि-ससहरहि । मदिणु दणुषह-कम्दाषणही घरे संघ करेवी रावणही ॥५॥
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy