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पउमचरित
वन्धण-विमुक णं णिस्य उल्लु । दस सहावे जेम सलु ॥५|| जुबई जणु अण्णु समुच्चहइ । आय रिट व वरिउ कहर कहा ॥३॥ णं अक्षर पन्तिहि पडु मणिउ । 'तुम्हढे सुकेसु परिपालगिउ । सडिकेसे तव-सिय कय करें। जं जाणहि तं पहुं बहु मि करें |
लेहु घिवेप्पिणु उवहिर पुर पडिसन्दु परिट्टियड
पत्ता
पुत्तहाँ रज्जु देवि गिरवता । वाणरदीड स ई भुजन्सड ॥१॥
७. सत्तमो संधि पडिचन्दहो जाय किचिनन्धय पवर-मुख । र्ण रिसह-जिण्यासु मरह-वाहुवकि वे वि सुव ।।१।।
[.]. बुद्ध छुडु सरीर-संपति पत्त । तहि अवसरे केण वि कहिय वत्त ।।।। 'वेयर-कढएँ घण-कणय-पउरें। दाहिण सेहिहि आहचणयर ॥२॥ विजामन्दरु णामेण राज । वेयमा अंग्ग-मदिसिएँ सहार ॥३॥ सिरिमाल-पाम तहाँ तणिय दुहिय । इन्दीवरपिछ कप-चन्द-मुहिय na कयली-कन्दल-सोमाल वाक। सा पर घिवेसह कहों वि माक' ॥१॥ तं णिसुणेचि पवर-कहपहि। गमु समिड किन्मिन्यएहि ।। होइयई विमाण पविय जोह। संचक्क पाहणे दिण्ण-सोइ ॥॥ णिघिसन्हें दाहिण-सेवि पस। जहि मिमिया विनाहर समस्त ॥॥