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पउमपरिव
[१४] पभणिउ मीम 'होहि दिए रज्महौँ । हउँ पुणु जामि यामि णिय-कहाँ 13 तेण वि वुत्तु 'प्याहिं वर मामि । छेनछह पर जि कहिय गउ भुमि ॥२ चत्तु मीमु मइरहि हकारिउ । दिपण पिहिमि वासणे वइसारिक ।।३।। आप्पुणु भाडु जम णिकयन्तउ। मत कति पुन पिस्नुा पनर ॥४॥ सा एसह विणिय-पडिबक्सहौं । रज़ करन्तहों तहाँ महरपणही ।। ॥ देवरक्खु उप्पण्णउ गन्दणु । परवइ एक-दिवसें गउ उववतु ॥६॥ कोलण-पॉहिहे परिमिउ णारिहि । पहाइ गहन्दुध सहुँ गणियारिहिया णियडिय तासु दि ितहि अवसरे । जहि भुउ महुयरु कमलम्भन्तर ।।८॥
घत्ता चिन्तिक 'जिह धुअगाउ रस-लम्पड्ड अच्छन्तड । शिह कामाउर सग्नु कामिणि-घयणासत्तउ' ॥९॥
गिय-मणे जाइ विसायहाँ जाउँ हिँ । सबण-साधु संपाहत तावे हि ॥१॥ सयल वि रिसि तियाल-जोगेसर । महकइ गमम दाइ वाईसर ॥२॥ सयल वि बन्धु-सत्तु-सममावा । तिण-कण-परिहरण-सहाघा ॥३॥ सयल वि जल-मल किय-हा। धीरतणेण महीहर-जेहा ।।। सयल बि णिय-तब-तेप दिणयर 1 गम्भीरतणेण स्यणायर ॥५॥ सपल वि घोर-चोर-तव-तत्ता। सयल वि सयल-सन-परिचत्ता ।।५।। सयस बि कम्म अन्ध-विवंसण । सयल वि सयल-जीव-मम्भीसणा।। सयल बि परमागम-परिमाणा। काय किलेसे केक-पहाणा ।।८॥