________________
पउमरित
तीस परम जोयण विस्थिग्णी। सका-यरिं तुज्नु म. दिग्णी ॥५॥ अण्णु वि एक-वार छज्जोयम। लइ पायाळलक घणवाहण' ॥६॥ भीम-महामीमहुँ आपसे । दिण्णु पयाण मण परिमोसें ॥७॥ विमलकित्ति-विमलामल-मम्सिहिं । परिमित भवरहि मि सामन्तेहिं ॥४॥
धत्ता शारिधि पट्ट अविचल रज्जे परिहिउ । रक्खस-सही णाई पहिलउ कन्दु समुदिउ ।।।
[१] पहचँ का बल-सम्पत्तिएँ। पजिय-जिगहों गउ वन्दण-इतिएँ ॥१॥ तं समसरणु पईसह जाउँ हिं। सबरु वितहि जे पराइउ ताहि ॥२॥ इनिस मा दिदिमि-रिसाले। 'फा होसन्ति मधन्तें कालें ॥३॥ तुम्ह अहा वय-गुण-वता का तिश्पयर देव आइकम्ता ॥ से णिसुण मि कन्दप्प-वियारट । मागह-मासएँ कहइ मवारउ ।।५॥ 'मह बेहड केवल-संपणउ । एकु जि रिसह देउ उप्पण्णउ ।।६।। प. जेहन खण्ड-पहाणउ । भरह-णराहिउ एक्कु जि राणा || पई विण दस होसन्ति परेसर। मई विणु वावीस वि सिस्थकर |८|| पाय घसएव णव जि शारायण हर एयारह णन जि दसाणण ॥९॥ अण्णु वि पक्षणसहि पुराणई। जिण-सासणे होसन्ति पहाण,' ॥१०॥
धत्ता सोयदपाहणु साम भावे पुछउ वहन्तउ । दस-उत्तरें सपण भरहु जेम णिक्वन्तउ ।।३३।।
[..] णिय-णम्दणहों णिहय-परिवक्खहाँ । सका-णयरि दिष्ण महरक्खहों ।।१।। बहर्ष काले सासय-थायहों। अजिय भडारड गड णिवागहों ॥२॥ सयरहों सयल पिहिमि भुजाम्यहों। स्यण-गिहाणई परिपालाम्तहाँ ॥३॥