________________
पउमचरित
[1 ] सं क्यणु सुणे वि गउ भरहु तेत्थु । बाहुबलि-भारउ अचलु जेरधु ॥ १॥ सन्वङ्गु पडिउ चलणहि तासु। 'सज सणिय पिहिमि हउँ तुम्ह दासुर विण्णवह समावइ एम जाम। चड़ घाइ-कम्म गय खयहाँ ताम ॥३॥ उपपणउ केवल-णाणु विमलु। थिउ दंहु खणई दुख-धवल ॥१॥ पउमासणु भूसणु सेय-चमरु। भा-मण्डलु एकु कम पवरु ॥५॥ प्रस्थक्कर शाट -णिका
-गलित बास धोहि दिवसहि तिहुअण-अणारि । णासिय घाइय-कम्म वि चयारि ॥७॥ भट्टविह-कम्म-वन्धण-विमुक्छु । सिबउ सिखालउ णवर दुक्क ८ ॥
पत्ता रिसड्डु वि गउणिवाणहाँ साणय-याणही भरह पि णिवुह पत्तः । भक्ककित्ति थिङ उजाह दणु दुग्गेज्म रज्जु स ई भु अन्नउ ॥९॥
५. पञ्चमो संधि
अरषद् गोसम-सामि सुणि सेणिय उप्पत्ति
तिहुमण-लद्व-पसंस हुँ । स्वस-वाणर-बसहुँ ॥१॥