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पउमचरिउ
किं आएं साइम परम- मोक्लु ।
परिचिन्तेंवि सुइरु मणेश एम । 'मडु तणिय पिहिमि हुँ मुझें माय
जहिँ एटम अचलु भणन्तु सोक्खु ॥ ४ ॥ णु पवित्र गरादि डिम्भु प्रेम ||५|| सोमप्पहु कैर करेद्र राय ' ॥ ३३३
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सुणिसहल करेंवि जिणु गुरु भणेवि । थिउ प मुट्ठि सिरें कोट देवि ॥ ७ ॥ सुलुगिरि ने सरि ॥८
ओलम्पिक
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घत्ता
बेहि सु बिसाह वेसको जाहि अहि-विष्टिय वम्मीयदि । खविण मुकु भारत मरण-विवार णं संसारही मोहिं ॥ ९ ॥
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एस्थन्तरं केवल गाण-वाहु | तलोक-पियाभह जग-जणैरु | थो हि दिवसेंहिं महेसरो वि । थोक्तुम्गीरिय गुरु-पुर भाइ । वन्देष्पिणु सविह धम्म-पालु | 'बाहुबलि भडारा सुह - णिद्दाणु । तं पिसुर्णेवि परम-जिणेसरेण | 'अवि ईसीसि कसाउ तासु ।
कइलासें परिडि रिसहाहु ॥१॥ समर विस गणुस पारुि ॥२॥ तहाँ बन्दण- हतिऍ भाउ सो वि ॥ ३ ॥ परलीय-मूहको पाइँ ॥४॥ पुणु पुच्छिउ तिहुवण- सामिसालु ॥५॥ के कज्जे अज्जु ण होइ णाणु' ॥ ३ ॥ वारि दिन् मासन्वरेण ॥ ७ ॥ जं खेसे मुहारएँ कि शिवासु ॥ ८ ॥
घन्ता
जड़ मरहों जि समति तोकिं चपि महँ चलणेंहिँ महि-मण्डलु । उसी एम्बइयर तेण ण पावइ केवलु' ||९||
एकसाएं