SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७१ पउमचरिउ किं आएं साइम परम- मोक्लु । परिचिन्तेंवि सुइरु मणेश एम । 'मडु तणिय पिहिमि हुँ मुझें माय जहिँ एटम अचलु भणन्तु सोक्खु ॥ ४ ॥ णु पवित्र गरादि डिम्भु प्रेम ||५|| सोमप्पहु कैर करेद्र राय ' ॥ ३३३ I सुणिसहल करेंवि जिणु गुरु भणेवि । थिउ प मुट्ठि सिरें कोट देवि ॥ ७ ॥ सुलुगिरि ने सरि ॥८ ओलम्पिक र घत्ता बेहि सु बिसाह वेसको जाहि अहि-विष्टिय वम्मीयदि । खविण मुकु भारत मरण-विवार णं संसारही मोहिं ॥ ९ ॥ ["] एस्थन्तरं केवल गाण-वाहु | तलोक-पियाभह जग-जणैरु | थो हि दिवसेंहिं महेसरो वि । थोक्तुम्गीरिय गुरु-पुर भाइ । वन्देष्पिणु सविह धम्म-पालु | 'बाहुबलि भडारा सुह - णिद्दाणु । तं पिसुर्णेवि परम-जिणेसरेण | 'अवि ईसीसि कसाउ तासु । कइलासें परिडि रिसहाहु ॥१॥ समर विस गणुस पारुि ॥२॥ तहाँ बन्दण- हतिऍ भाउ सो वि ॥ ३ ॥ परलीय-मूहको पाइँ ॥४॥ पुणु पुच्छिउ तिहुवण- सामिसालु ॥५॥ के कज्जे अज्जु ण होइ णाणु' ॥ ३ ॥ वारि दिन् मासन्वरेण ॥ ७ ॥ जं खेसे मुहारएँ कि शिवासु ॥ ८ ॥ घन्ता जड़ मरहों जि समति तोकिं चपि महँ चलणेंहिँ महि-मण्डलु । उसी एम्बइयर तेण ण पावइ केवलु' ||९|| एकसाएं
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy