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________________ होंगी कि मैं न आती तो अच्छा होता!" "यह सिर्फ कल्पना है या इसके आधार-स्वरूप कोई घटना घटी है?" "घटना जैसे बड़े शब्द का प्रयोग करना ठीक नहीं । थोड़े दिनों के लिए सन्निधान यहाँ रहेंगे तो समझ जाएंगे। आपने यहाँ तक आने का कष्ट क्यों किया?' यह बात एक व्यंग्य की तरह कही थी, पर ऊपरी सहानुभूति के साथ । मैंने कहा, 'हम केवल उनकी छाया मात्र हैं । इसमें कोई तकलीफ की बात नहीं। पट्टमहादेवीजी समझती हैं कि सदा सन्निधान के साथ किसी-न-किसी का रहना उचित है। मुझे भी लगा कि बात ठीक है।" "तब उन्होंने बात ही बदल दी। कहा, 'वे ही आ सकती थीं न? शायद यह वैष्णव-स्थान है, इसलिए नहीं आयी होंगी।' कहने के दंग में कुछ शंका और कड़वापन लगा। फिर भी मैंने कहा, 'ऐसा कुछ नहीं। जब सन्निधान नहीं थे तब वे आयी यौं न? अभी वहाँ विजयोत्सव की तैयारियां हो रही हैं। मेरी दीदी युद्ध क्षेत्र में साथ रहीं। उन्हें विश्रान्ति की आवश्यकता थी। मैं खाली थी तो मुझसे ही साथ आने को कह दिया।' तो उन्होंने पूछा, 'तो क्या जिससे पाणिग्रहण किया उनके साथ रहने के लिए इनकी-उनकी अनुमति लेनी चाहिए?' मैंने जवाब दिया, 'ऐसा कुछ नहीं, सन्निधान की इच्छा जैसी होगी, वैसा ही।' बात यहीं रुक गयी।" "तात्पर्य यही हुआ कि लक्ष्मीदेवी के दिमाग में अण्ट-सपट विचार किसी ने भर दिया है।" "लक्ष्मीदेवी ने सन्निधान से भी ऐसी बातें कही हैं?" "मेरे समक्ष कोई बात नहीं उठायी। संग-सुख मात्र व्यक्त हुआ है।" "ऐसी हालत में सन्निधान को ऐसा विचार करने की आवश्यकता नहीं है और न ही उनके दिमाग में किसी ने कुछ भरा है।'' "जो भी हो, सतर्कता से यह सब विचार कर देखना होगा। चलो, अब चलें?" "सन्निधान यहाँ पट्टमहादेवीजी के साथ बहुत देर तक बैठा करते थे, ऐसा सुना "तब...अब वह बात क्यों?11 "आपको उस समय की वह तृप्ति हप कभी नहीं दे सकेंगी?" "यहाँ एकाग्र मनों का परस्पर ऐक्य होना जरूरी है। तब जो सुख मिलेगा वह कुछ और ही होगा।" "तो उस तरह के ऐक्य के लिए हम सहयोगी नहीं बन सकेंगी?" "ऐसा नहीं, देवि! यह एकतरफा व्यवहार नहीं। तब हमारा मन एकमुखी था। एक ही जगह केन्द्रित था। वह अब चारों और व्याप्त है । एक जगह नहीं टिक पा रहा पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 103
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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