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बतायी थी। अब उसमें कोई बाधा नहीं। कम से कम इसके लिए एक गर्भगृह तो होना चाहिए न! इसी मुहूर्त तक वह बन जाएगा?" आगमशास्त्रियों ने पूछा।
"उसकी चिन्ता न करें। मूल मन्दिर के पश्चिम-दक्षिण में उसे बनवाएंगे।" दासोज ने कहा।
सभा विसर्जित हुई। उसी कार्यक्रम के अनुसार कार्य चालू हो गया।
डंकण मूल-मूर्ति की तैयारी में लग गया। दासोज की देख-रेख में गर्भगृह के निर्माण का कार्य भी शुरू हो गया।
नव-वर्ष आरम्भ के दिन, हमेशा की तरह, एक औपचारिक राजसभा बैठी। शहर के गण्यमान्य, प्रमुख व्यक्ति, राज्य के भिन्न-भिन्न भागों से आये नेतागण आदि सब आकर, राजदम्पतियों को प्रणाम कर, अपनी निष्ठा प्रदर्शित कर चले गये। विजयोत्सव होने ही वाला था, इसलिए इस सभा में किसी विशेष बातचीत के लिए कोई मौका भी नहीं था। सभा एक तरह से औपचारिक रूप से हो समाप्त हो गयी।
जकणाचार्य ने इस राजसभा को बड़े एकाग्न भाव से देखा और फिर उसे रात भर बैठकर अपनी कल्पना के अनुसार चित्रित कर लिया।
देव-पदिा के हाहाः । रिमा स्तन र लाने के योग्य उसे प्रभामण्डल से युक्त कर प्रस्तर में उकेरने का काम शुरू किया।
वास्तव में पल्लोज के लिए कोई निश्चित कार्य नहीं था। कहीं विशेष रूप से अपने को प्रकट न करने के कारण बहुतों को यह मालूम नहीं था कि वह स्थपति का रिश्तेदार है। इस परिस्थिति ने उसके लिए एक सहूलियत पैदा कर दी थी। किसी से सम्बद्ध बातों को सर्वत्र सुन सकना उसके लिए आसान था।
हेमलम्ब संवत्सर के नव-वर्ष-आरम्भ के दिन के बाद, दो-तीन दिनों के अन्दरअन्दर, बेलापुरी में जहाँ देखो वहाँ तिलकधारी हो तिलकधारी नजर आने लगे। पता नहीं, इतने श्रीवैष्णव कहाँ से आ गये! हजारों की तादाद में ये तिलकधारी सब जगह भर गये।
कुछ कानाफूसी इधर-उधर शुरू हो गयी थी। लोग तरह-तरह की बातें करने लगे थे। कुछ बातें मल्लोज के कानों में भी पड़ी। इन सभी बातों का सारांश उसने तीज के दिन रात को अपने निवासमूह में बताया, "पट्टमहादेवी जैन है। कोई बात उसके मुँह से निकलती तो उसमें उस नंगे (गोम्मट) की ही बात होती है। हर एक पर अपने ही धर्म को आरोपित करने की बात करती है। पति के वैष्णव मत स्वीकार करने पर भी वह अपने को जैन ही समझती है। वैष्णव की जूठन खाती है, उसके साथ शय्यासुख पाती है। उसका कोई जाति-कुल भी है? परन्तु स्थान उसका साथ दे रहा है। इस अन्धे पहाराज को भी उसके प्रति बहुत प्रेम है । उसकी बात उनके लिए वेदवाक्य है। वह किसी की नहीं सुनते । मन्दिर निर्माण के कार्य में मदद देने का बहाना करके उसने
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार ::9