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________________ ललाटपट्ट । धट्टवाळव । तुळुवर सेळेव । गोयिंदवाडि भयंकर । नहितबळ संखर । रोद्दव दिव। सितगरं पिडिव । रायरायपुर सृरेकार 1 वैरिभंगार। वीरनारायण। सौर्यपारायण। श्रीमतु केशवदेव पादाराधकारिपुमंडलिक साधकाधनेक नामावली समाळंक्रितर्नु । गिरिदुर्ग बनदुर्ग जळदुर्गाद्यनेक दुर्गगळ श्रमदि कोड चंडप्रतापदि गंगवाडि तीबत्तुर सासिरममु लोक्किगुंडिवर मंडिगे साध्यं माडि मत्तं। एळेग्रोळद्रुष्टर नुद्धतारिग नाटंदोत्ति बेंकोंडु दो। वळदि देशमनावगं तनो साध्यं माडिरलु गंगमं ॥ डळ मेंदोलेंगे तेत्तुमित्तु बेसनं पूण्दिर्पिन विष्णु पो। सकसिसिदोदि मंतम स्मादि !! एत्तिदनेत्तलतलिदिराद निपालकरळिक बल्कि कं। डित्तु समस्त वस्तुगळ नाळुतनम सलेपूण्दु संततं ॥ सुतलु मो लगिप्पर ने मुन्निनवर्गमने करादत्र । गर्गत्तळगं पोगर्तगेने अपिणपनावनो विष्णुभूपन ॥ अन्तु त्रिभुवनमल्ल तळकाडुगोण्ड भुजन्दल वीरगंग विष्णुवर्धन पोसाळदेवर का नाशक, तुलुवों को भगानेवाला, गोविन्दवाडी की भयंकर, शत्रुसेना के लिए शंकर, रोद्द को रौंदनेवाला, विरजनों का बन्धक, रायरायपुर को लूटनेवाला, वैरिनाश के लिए सूर्योदय, वीरनारायण, शौर्यपारायण, श्रीमत् केशवदेव पादाराधका रिपुसामन्तसाधक इत्यादि अनेक नामों से सुशोभित; गिरिदुर्ग- वनदुर्ग-जलदुर्ग आदि अनेक दुर्गों को सहज ही स्वाधीन करनेवाला, प्रबल प्रताप से गंगवाडि छियानबे सहस्र देश को लोक्किगुण्डि तक वश में कर, अपने शासन में मिलाकर, फिर-- देश के दुष्टों का एवं मदमत्त शत्रुओं का सामना कर, अपने भुजबल से देश को अपने अधीन कर, गंगमण्डल की प्रजा से सराहना पाकर, उनको आज्ञा का पालक बनाकर, पोय्सल विष्णु राज्य-प्राप्त से सन्तुष्ट तथा उत्साह से सुखपूर्वक रहा। यह विष्णुभूप जिस और आगे बढ़ा, वहाँ के शत्रु महाराज के भय से जीत लिये गये, अपनी सम्पत्ति और राज्याधिकार को सौंपकर वे सर्वदा इसकी स्तुति करने लगे। पुराने अनेक नृपालों से भी इसकी कीर्ति अधिक हुई। ऐसे विष्णुभूपति का वर्णन कौन कर सकता है? इस तरह त्रिभुवनमल्ल, तलकाडुगोंड, भुजबलवीरगंग विष्णुवर्धन पोय्सलदेव पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 461
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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