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________________ वाडिगोंड। परिपक्षनरपाल लक्ष्मिय निकाळिंगोंड। तमेतणुव ! जय श्रीकांतयनप्युव । कृरे कृप। सौग्यपतोर्प । वीरांगनालिंगित दक्षिणदोईंड। नुडिदते गंड। आदियम हिंदयसूल। बोरांगनालिंगित लोल । उद्धताराति केजवन कुंजर। सरणागत वज्रपंजर। सहजकीर्तिध्वज। संग्राम विजयध्वज। गिरेय मनोभंग। वीर प्रसंग। नरसिंहवर्म निर्मूळनं । कळपाळ कालानळं। हागलुगोंड । चतुर्मुख गंड। चतुर चतुर्मुख । नाहव शण्मुख । सरस्वती का वितं । उन्ननिस , रिसतदर हल्लत भीत कोही । दानबिनोद। चंपकामोद। चत्समय समुद्धरण। गंडराभरण। विवेकनारायण। वीर पारायण । साहित्य विद्याधर । समरधुरंधर । पोय्सलान्त्रय भानु । कविजन कामधेनु । कलियुग पार्थ। दुष्टग पूर्थ। संग्रामराम। साहस भीम। हयवत्सराज। कांतामनोज। मत्तगज भंगदत्त । नभिनव चारुदत्त। नीलगिरिं समुद्धरण। गंडराभरण। कोंगरमारि। रिपुकुळतळ प्रहारिं । नेरेयूरनलेव। कोयतूर तुळिव। हें जेरुदिसापट्ट । संग्रामजत्तलट्ट । पांड्यनं बैंकोंड। उच्चंगि गोंड। एकांगवीर । संग्रामधीर। पोंबुच्य निर्धारण। साविमले निल्लाटण। वैरिकाळानळ । नहित दावानल। शत्रुनपाळ दिशापट्ट। मित्रनरपाळ वाडिम्वाधीन करनेवाला, शत्रुराजाओं की लक्ष्मी को स्ववश करनेवाला, दुष्टों का नाशक, जयश्री वरण करनेवाला, स्नेहियों का मित्र, शौर्यप्रदर्शक, दक्षिण भुजा से वीरांगना का आलिंगन करनेवाला, अपने वचन के अनुसार चलनेवाला, आदियम के हृदय का शूल, वीरांगना से आलिंगित प्रियंकर, मदोन्मत्त शत्रुरूपी कमलवन के लिए गज, शरणागतों का दृढ़संरक्षक, स्वयं कीर्तिपताका समान, संग्राम का विजयध्वज..गिरे की अभिलाषा का नाशक, वीरप्रसंग, नरसिंहवर्मा का नाशक, कलपाल का कालानल, हार्नुगल स्वाधीन करनेवाला, चारों तरफ युद्ध करनेवला, कुशलों का सृष्टिकर्ता, युद्ध में कार्तिकेय, सरस्वती का कर्णाभरण, विष्णुवंश की शोभा, शत्रुहृदय को भयंकर, कायरों को न मारनेवाला, दानविनोद, चम्पकामोद, चतुस्समय का समुद्धारक, शूरों का भूषण, विवेकनारायण, वीर-पारायण, साहित्य-विद्याधर, समरधुरन्धर, पोय्सलवंश का सूर्य, कविजन कामधेनु, कलियुग का अर्जुन, दुष्टों के लिए दुष्ट, संग्राम-राम, साहसभीय, हयवत्सराज, कान्तापनोज, मत्तगज-भंगदत्त, अभिनव चारुदत्त, नीलगिरि का समुद्धारक, शूरों का भूषण, कोंगों का नाशक, रिपुर्वशों का समूल नाशक, तेरेयूर का संरोधक, कोयतूर को रौंदनेवाला, हेंजेरुस्ववशक, संग्राम का जत्तलट्ट, पाण्ड्य के साथ योद्धा, उच्चगि स्वाधीन करनेवाला, एकांगवीर, संग्रामधीर, पोंबुच्च का नाशक, साविमले संरोधक, वैरिकालानल, शत्रुओं का दावानल, शत्रुराजाओं को तितर-बितर करनेवाला, मित्र राजाओं का किरीट, घट्टों 460 :: पट्टमहादेवी शान्तला ; भाग चार
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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