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________________ तक इस राज्य के राजे-महाराजे, रानी-महारानी-कोई भी शिवरात्रि के इस पर्व में सम्मिलित नहीं हुए थे। परन्तु इस बार पोय्सल पट्टमहादेवीजी, युवराज, युवराज्ञी, राजकुमार तथा पट्टमहादेवीजी के माता-पिता-सभी जन सम्मिलित हुए हैं। वे केवल उपस्थित ही नहीं रहे. उन्होंने पूजा में सक्रिय रूप से भाग लिया है। खासकर पट्टमहादेवीजी के द्वारा वेद-मन्त्र पठन तो साक्षात् शारदा के ही मुख से सुनने का-सा भान दे रहा था। सुनकर रोमांच हो रहा था। वे जिनभक्त हैं, जैन हैं, फिर भी उन्हें यह सब कण्ठस्थ है-यह हम नहीं जानते थे। हम केवल कुएँ के मेहक जैसे हैं, सभी को अपने ही जैसे समझने वाले। अर्थात् अन्यान्य बातों की जैसे हमें जानकारी नहीं, वैसे ही दूसरे भी नहीं जानते हैं, यही हम अब तक समझते आये। हमारी पट्टमहादेवीजी त्रिमूर्तियों का समन्वय हैं, यह कहें तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं। किसी जमाने में स्थापित इस शिवमूर्ति में आज नवीन प्राण संचरित हुए हैं। पट्टमहादेवीजी के नृत्य से साक्षात् नटराज शिवजी स्पन्दित हो उठे थे, पूरा मन्दिर स्पन्दित हो नादमय हो गया था ! इस प्रसंग में, इस पवित्र तीर्थ में ज्ञानार्जन के लिए उपयुक्त अध्ययन केन्द्र हो, और ज्ञानाधिष्ठात्री शारदादेवी की स्थापना भी हो, यह हम सबकी बड़ी अभिलाषा है। इस कार्य को संगत एवं उत्तम मानकर पट्टमहादेवीजी ने अपनी स्वीकृति भी दे दी है। सन्निधान का आशीर्वाद भी प्राप्त कर लिया गया है। पट्टमहादेवीजी चाहती हैं कि वह कार्य महाजनों के हाथों सम्पन्न हो। इस अवसर पर शिवजी भगवान् राजपरिवार को एवं समस्त भक्त-समूह को दीर्घायु प्रदान करें और उनका जीवन सुख एवं समृद्ध बनाएँ—यही प्रार्थना करता हूँ।" इतना कह धर्मदर्शी बैठ गये।। सभामंच के निकट ही जकणाचार्य बैठे थे। उन्होंने उठकर निवेदन किया, "इस शुभ कार्य के लिए अपेक्षित मन्दिरों एवं भवन-निर्माण का कार्य मेरे जिम्मे रहा।" इसी तरह वहाँ उपस्थित सभी ने स्वेच्छा से दान की घोषणा की। चोकिमय्या ने भी अपनी माता के स्मारक के रूप में एक मण्डप बनवाने की घोषणा की। यह अभिलाषा किसी तरह की रोक-टोक के बिना कार्यरूप में परिणत हुई। दूसरे दिन शान्तलदेवी ने जकणाचार्य से पूछा, "इस निर्माण के लिए कितना समय लगेगा? यहाँ कला-प्रदर्शन की अपेक्षा एक सुभद्र शारदा-मन्दिर का होना जरूरी हैं। आपकी सारी कला शारदा की मूर्ति में रूपित हो।" जकणाचार्य ने कहा, "कारीगर और सामग्री प्राप्त हो जाए तो गर्भगृह और मूर्ति-निर्माण कार्य को एक महीने में पूरा किया जा सकता है।" क्षण-भर सोचने के बाद यह भी कहा, "शारदा माई की प्रतिष्ठा विरोधिकृत संवत्सर के चैत्र सुदी दूज, सोमवार के दिन की जा सकती है।" "तब ठीक है। एक महीने के भीतर शारदा की मूर्ति और उसकी प्रतिष्ठा के लिए गर्भगृह-दोनों का निर्माण हो जाना चाहिए । शेष सभी कार्य भी तेजी से चलते रहें। पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 449
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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