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जोड़े आँखें मूंदे बैठी शान्तलदेवी के मुख से भी मन्त्रोच्चार होने लगा। तीसरे प्रहर की पृजा में भी शान्तलदेवी के रुद्र-पतन का क्रम जारी रहा। चौथे प्रहर का रुद्राभिषेक समाप्त होने के बाद, शान्तलदेवी ने पुजारी को बुलवा भेजा और कहा, "शिव महारुद्र भी हैं और नटराज भी। हर प्रहर की पूजा में आपने नृत्य-सेवा क्यों नहीं करायी ? कमसे-कम अब इस अन्तिम प्रहर की पूजा में नृत्य- सेया की व्यवस्था अवश्य कीजिए।"
"यहाँ नृत्य करने वाला कोई नहीं है। केवल औपचारिक रूप से नृत्य--सेवा स्वीकार करने की प्रार्थना ही करनी होगी।" पुजारीजी ने कहा।
"यदि मैं यह सेवा समर्पित करूँ तो...!"
पुजारीजी की आँखों में आश्चर्य और सन्तोष दोनों का मिश्रित भाव तैर गया, "परन्तु पट्टमहादेवीजी प्रात:काल से निराहार हैं। मन्त्रोच्चार से आपने शिवजी को प्रसन्न किया है। अब आर पाना छोफ माग
"मेरी अपनी बात छोड़िए। सेवा समर्पित करने में कोई बाधा तो नहीं?" "परमेश्वर की सेवा में भला क्या बाधा? परन्तु..." "मैं पहली बार जब यहाँ आयी थी तब भी मैंने यह सेवा अर्पित की थी।" "तब आप पट्टमहादेवी नहीं थीं।" "तो क्या पट्टमहादेवी ऐसी सेवा के योग्य नहीं?" "न-न, ऐसा कह सकते हैं?" "तब तो ठीक है।"
पट्टमहादेवी की नृत्य-सेवा हुई। लोग चकित होकर देख रहे थे। एक मुहूर्त तक नृत्य-सेवा चली। शान्तलदेवी की गति तथा पदचाप से समूचा मन्दिर स्पन्दित हुआसा लग रहा था। मन्दिर के कोने-कोने से नाद होने लगा था। जन-समूह स्पन्दित हो उठा था, थिरक उठा था।
नृत्य-सेवा की समाप्ति के साथ संगीत-संवा भी उन्होंने समर्पित की। प्रभातकालीन राग में शिवस्तुतिपरक संगीत आरम्भ हुआ और उसी के साथ अरुणोदय भी हुआ।
पूजा को सारी विधियों की समाप्ति पर प्रसाद बाँटा गया। शिवगंगा में जितने लोग जमा हुए थे उन सबके प्रसाद स्वीकार करने के बाद, शान्तलदेवी ने भी प्रसाद स्वीकार किया।
उसी दिन शाम को एक छोटी सभा का आयोजन किया गया था। उस दिन जो भक्त वहाँ जमा हुए थे, उनमें अनेक ग्रामाधिकारी, व्यापारी, धनी लोग भी शामिल थे। शिवगंगा क्षेत्र के धर्मदर्शी सभा में उपस्थित सजनों के समक्ष अपनी योजना प्रस्तुत करने के इरादे से उठ खड़े हुए। बोले, "सज्जनो! इस बार शिवरात्रि-समारोह को एक विशेषता है। वैसे तो नाम से साधारण संवत्सर है, परन्तु इस क्षेत्र के इतिहास के लिए यह असाधारण संवत्सर सिद्ध हुआ है। क्योंकि इस क्षेत्र के उद्गम के समय से अब
448 :: पट्टमहादषी शान्तला : भाग चार