SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 418
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पता चला। इस तरह महाराज राजधानी को छोड़कर हानुंगल की ओर रवाना हो गये। लक्ष्मीदेवी ने तलकाडु जाने का निर्णय किया था लेकिन कुछ दिन रुककर । इसलिए वह और राजकुमार नरसिंह राजधानी में ही ठहरे रहे: पूर्व निश्चय के अनुसार एमलदेवी और उनकी बहनें भी ठहर गयी थी। किसी खास घटना के बिना दो पखवाड़े गुजर गये। बाद में हागल से खबर मिली की राजलदेवी भी महाराज के साथ हानुगल गयी है । यह खबर भोजन के समय इधर-उधर की बातों के दौरान शान्तलदेवी ने पालदेवी को दी। यह सुन लक्ष्मीदेवी बीच में बोल उठी, "मंचियरस की अस्वस्थता तो एक बहाना था। मन-ही-मन तो कुछ और ही सोच रखा था उसने। वैसा ही किया। मुझे तो उसी दिन आभास हो गया था कि वह ऐसा ही करेगी, परन्तु मैं ही क्यों कहूँ--यह सोचकर चुप रही आयो।" "इसमें सोच-विचार करने की क्या बात है?" शान्तलदेवी ने प्रश्न किया। "करने योग्य सब करके, चारों ओर से अपने को सुरक्षित बना लेने के बाद, आपको कुछ भी ऐसा नहीं दिखता। परन्तु मैं, जिसे कहीं से कुछ भी सहारा नहीं, अन्धी बनी रहूँ यह कैसे हो सकता है ?" लक्ष्मीदेवी ने अपने मन की बात आखिर प्रकट ही कर दी। "क्या कह रही हो, लक्ष्मी ? मैंने कौन-सी सुरक्षा कर लो है? तुम्हें क्या सहारा नहीं मिला? इन सब बातों के क्या माने?" "मयों, मुझको ही कहना होगा? क्या मैं नहीं जानती कि यह सब पड्यन्त्र किसका रचा हुआ है ?" "देखो लक्ष्मी, तुम व्यर्थ की कल्पना करके जो मन आए मत बोला करो। फिर जब सचाई प्रकट होगी तो वह तुमको ही निगल जाएगी।" "जो है नहीं, उसकी कल्पना नहीं की मैंने: जो है सी ही कह रही हूँ। विजयोत्सव में महाराज ने जो बातें कहीं, क्या वे पट्टमहादेवी की रटायी हुई नहीं हैं ?" "छि:-छि:, तुम यह क्या कह रही हो, लक्ष्मीदेवी ? वास्तव में उस दिन महाराज की बातें सुनकर स्वयं पट्टमहादेवी ही चकित रह गयी थीं।" पद्मलदेवी ने कहा। "क्यों, उनके बाद पट्टमहादेवी ही सिंहासनारोहण करेंगी, ऐसा महाराज ने कहा नहीं, इसलिए?" शान्तलदेवी भोजन छोड़कर, हाथ धोने चली गयीं। "देखा?" "देखा क्यों नहीं। अपने विश्रामागार में मैंगवाकर वहीं खा लेंगी। गयीं तो गयीं!" उसके स्वर में उसकी हीनता साफ झलक रही थी। "मतलब यही हुआ कि अभी तुमको अकल नहीं आयी। देखो लक्ष्मी, तुमने ॥ 422 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy