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________________ सा खड़ा ही रहा। उसकी बन्द आँखों से आनन्द के आँसू झरने लगे। "वही, उस दिन के वेश में बाहुबली मुस्कुराकर आशीर्वाद दे रहे हैं: किरीट, कुण्डल, गदा और पद्म धारण किये आशीर्वाद दे रहे हैं। छोटी आमाजी पट्टमहादेवी हुई, राष्ट्र में एक ही क्रिया लोगों में भिन्न-भिन्न भावनाएँ उत्पन्न करती है। कभीकभी द्वेष और ईर्ष्या की त्तिनगारियाँ भी रहा है। लेकिन हम मामुबली सदा एक से, अपरिवर्तित हैं। जैसे उस दिन थे, वैसे ही आज । भगवान् एक, नाम-रूप अनेक। मानव के रूप में जन्म लिया, देवत्व को प्राप्त हुए, फिर भी अहंकाररहित, नवजात शिशु के समान निर्मल हैं और सभी में करुणा का संचार कर रहे हैं। चारों ओर घटनेवाली घटनाओं के कारण इस जीवन से विरक्ति। मुझको भी यहाँ आकर लगता है कि मेरे जीवन का भी कुछ मूल्य है। इस दर्शन से अन्त तक कर्तव्य-पालन करते रहने की प्रेरणा मुझे प्राप्त हुई है। छोटी अम्माजी और उनकी सन्तान को मेरी सेवा की आवश्यकता है, ऐसी भावना पता नहीं, कब मेरे मन में पैदा होकर पैठ गयी है। उस भावना के अनुकूल चलने के कारण ही मेरी और अधिक उम्र बढ़ा दी गयी है। मैं धन्य हूँ।"रेषिमय्या ने कहा 1 उसके कहने के ढंग से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि कोई उससे कहलवा रहा है। उसकी आँखें खुली तो शान्तलदेवी ने उससे कहा, "अब चलें, रेविमय्या!" "उसकी भावुकता हमारे लिए कोई नयी बात नहीं, देवि!" बिट्टिदेव कहते हुए उठ खड़े हुए। दूसरे दिन सबने राजधानी की ओर प्रस्थान किया। विजयोत्सव का और तीर्थ-दर्शन-दोनों कार्य विधिवत् सम्पन्न हो गये। विजयोत्सब के दिन महाराज ने जैसा आदेश दिया था, सब लोग अपने-अपने क्षेत्रों के लिए रवाना हो गये थे। महाराज ने स्वयं बम्मलदेवी के साथ प्रस्थान करने का निश्चय किया। निश्चय हुआ था कि पट्टमहादेवीजी के साथ राजलदेवी रहेगी, लेकिन मचियरस की अस्वस्थता के कारण उनकी देखरेख करने के लिए उनके साथ रहने का उसने निर्णय किया था। मंचियरस ने विजयोत्सव में उपस्थित होने का समाचार दिया था, मगर फिर वहाँ से खबर भेज दी थी कि उनका स्वास्थ्य यात्रा के लिए अनुकूल स्थिति में नहीं है। राजलदेवी यह भी जानती थी कि महाराज हानुंगल जाते समय रास्ते में मंचियरस से मिलकर ही जाएंगे। वैसे महाराज ने चलने से पहले यह बात बम्मलदेवी को नहीं बतायी थी, चलते समय ही उससे कहा था। राजलदेवी भी महाराज के साथ निकली थी, पर उसका विचार मंचियरस के पास रुकने का है-यह बाद में ही सबको पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 421
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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