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के यह कहने पर कि पत्र उनके ही हाथ में दिया जाय, कुछ शंका होने लगी थी कि उसमें कुछ खास बात होगी।
"रेमिय्या, इनके ठहरने की व्यवस्था करो। फिलहाल ये यहीं रहेंगे।" शान्तलदेवी ने कहा ।
रेवमय्या कण्णमा को साथ लेकर बाहर चला गया। द्वारपाल ने बाहर से किवाड़ बन्द कर लिये ।
पट्टमहादेवी ने वह पत्र प्रधानजी के हाथ में दिया । उन्होंने उसे खोला । 'जोर से पढ़िए !" शान्तलदेवी ने कहा ।
प्रधानजी जोर से पढ़ने लगे, "हमारी पट्टमहादेवीजी को हमारा शुभ आशीष । पहले खुशखबरी सुनाने का भाग्य हमारा है। हम विजयी हुए हैं। बंकापुर पर पीय्सलपताका उसकी शोभा बढ़ा रही है। यहाँ की जनता ने बड़ी खुशी के साथ स्वागत किया है। आधा पेट खाकर जीनेवाले इन लोगों के लिए आराम से दो जून खाने की व्यवस्था हमने कर दी है। जयी बहुत पहले ही गुप्त मार्ग से कल्याण आकर नहाँ से अधिक सेना ले आने की तजवीज में लगा था। इस मौके पर उस सेना के यहाँ आने से पूर्व ही बिट्टिया के एक प्रयोग से हम अनपेक्षित ही इतने शीघ्र विजयी हो गये। फिलहाल हम जल्दी ही राजधानी नहीं लौट पाएँगे। इस पराजय के बाद चालुक्यों का अगला कदम क्या होगा, सो जानना कठिन है। प्रतीक्षा करनी हैं और गुप्तचरों को भेजकर पता लगाना है। उनकी गतिविधियों को जाने बगैर आना सम्भव नहीं । वास्तव में विजय के तुरन्त बाद उत्साह के साथ लौटने की हमारी अभिलाषा थी। परन्तु हमें जो समाचार मिला, उससे यह मालूम हुआ कि पट्टमहादेवीजी की गुप्त हत्या का षड्यन्त्र किया जा रहा है। यह भी खबर मिली कि इसमें छोटी रानी के लोगों का हाथ है। इस समाचार को सुनकर हमें बहुत परेशानी हो रही है। और छोटी रानी को राजधानी में बुलवाने का हमने जो आदेश दिया, वह भी हमें ठीक नहीं जँच रहा है। उन्हें वापस तलकाडु भेज दें। यह पत्रवाहक यों नया गुप्तचर है। वास्तव में वह गुप्तचर नहीं। एक खास मौके पर वह मिला, उसके पास कुछ जानने लायक बातें हैं। उन बातों को ठीक समय पर प्रकाश में लाना होगा, इसलिए उसे वहीं रख लें। पत्र का उत्तर किसी और से भिजवा देना। हमारी राय में यह कण्णमा विश्वसनीय व्यक्ति है। फिर भी नया होने के कारण उस पर निगरानी रहे। उसे यह न लगे कि अविश्वास की भावना से निगरानी रखी जा रही है। राजमहल में ही उसे कोई नौकरी दे दें। चाहें तो मायण चट्टला उससे सही जानकारी भी ले सकेंगे। उनके गुप्तचर दल में इसे शामिल कर सकती हैं। वहाँ की सभी बातों की हमें विस्तार से जानकारी भिजवा दें।"
गंगराज पत्र को अभी तह कर ही रहे थे कि इतने में विनयादित्य कह उठा, 'सचिव मादिराजजी ने जो कहा था वह अब कितना सही साबित हुआ, देखिए !"
372 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार
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