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________________ यदि आदेश दें तो हमारा होने पर भी उसकी तलाशी लेकर, निःशस्त्र बनाकर अन्दर लाया जा सकता है।" " ऐसा क्यों ?" "अभी आध्र घण्टा पहले एक व्यक्ति जो खुफिया जैसा था, आया। उसने राजमहल के एक परिचारक को मार डाला।" "कौन था वह ?" 54 'वह खिसक जाना चाहता था, लेकिन उसे पकड़कर बन्धन में रखा गया है।" "ठीक। उस पत्रवाहक को यहाँ ले आओ।" शान्तलदेवी की आज्ञा पाकर रेविमच्या चला गया। " आइए प्रधानजी, मन्त्रीजी, अभी और बैठिए ।" कहती हुई शान्तलदेवी स्वयं भी बैठ गयीं। थोड़ी ही देर में पत्रवाहक आया। उसने पट्टमहादेवी और दूसरे लोगों को देखकर उन्हें प्रणाम किया। उसके पीछे रेविमय्या कमर से बँधी तलवार की मूठ पर हाथ रखे तैयार खड़ा रहा। पट्टमहादेवी और दूसरे लोगों ने भी उस पत्रवाहक हरकारे को सिर से पैर तक देखा। किसी ने उसको नहीं पहचाना। "तुम कौन हो ? हमारा कोई गुप्तचर इस तरह पट्टमहादेवीजी तक स्वयं पहुँचने के लिए यों हठ नहीं करता।" गंगराज ने कहा । "मैं अभी हाल में भर्ती हुआ हूँ। इस बार के हमले में मैं महासन्निधान का कृपापात्र बना । दण्डनायक बिट्टियण्णाजी ने मुझ पर जो स्नेहभाव रखा, उसी से मुझे इस सेवा का सौभाग्य मिला। मुझे भी यहाँ की रीति मालूम है। परन्तु मैंने महासन्निधान के आदेश के अनुसार हो आचरण किया है, रोति या परम्परा के विरुद्ध चलने के इरादे से नहीं। कुछ अविनय हुई हो तो क्षमा करें-" कहते हुए, पत्र को आगे बढ़ाते हुए उसने प्रणाम की मुद्रा में सिर झुकाया । गंगराज ने कहा, "रेविमय्या, पत्र को लेकर पट्टमहादेवीजी के सामने प्रस्तुत करो। " रेविमय्या ने वैसा ही किया। पत्र को हाथ में लेकर शान्तलदेवी ने पूछा, "युद्ध का क्या हाल है ?" पत्रवाहक हरकारे ने कहा, "बंकापुर पर पोय्सल पताका फहरने लगी है । " "महासन्निधान कब वापस आ रहे हैं ?" तुरन्त शान्तलदेवी ने उत्साह से पूछा । "मुझे मालूम नहीं। पत्र में लिखा होगा शायद ! " 11 "तुम्हारा नाम ?" 44 'कण्णमा है।" " ठीक।" शान्तलदेवी ने पत्र खोलकर मन -ही-मन पढ़ लया । महासन्निधान पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार 371
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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