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________________ चुप न रहा। उसने जान लिया कि अब 62 से बच नहीं सकेंगे। वह रजकर बोला, 'आगे एक भी कदम रखा तो मार दिये जाओगे।" और काली ओढ्नी को अलग कर, तलवार चमकाता हुआ आगे बढ़ा। उसकी टोली के बाकी लोगों ने भी वही किया। पहरेवाले गिनती के छह थे। उन्हें सामना करना था बहुतों का, इसलिए उन्हें कुछ सूझा नहीं कि क्या करें। बिट्टियण्णा गरज उठा, "तोमर नीचे डाल दो।" बिट्टियणा की आवाज सुन चार द्वार-रक्षक तलवार लेकर दौड़ पड़े। उनमें से एक ने तलवार जोर से दे फेंकी। वह बिट्टिया के माथे पर जा लगी। एक बार बिट्टिया के मुँह से आह निकल गयी। मगर फिर तलवार चमकाते हुए उसने आवाज दी, “आओ वीरो! जयकेशी के इन कुत्तों को यहीं खत्म कर दें। हम अँधेरे में तलवार उठाना नहीं चाहते थे। इन लोगों ने लाचार कर दिया है। बढ़ो, सबको खतम कर दो!" दोनों दलों में टक्कर हो गयी। ऊपर जो लोग थे वे भी उतर आये। जयकेशी के वे सभी पहरेदार उस संघर्ष में मारे गये। वह कोई इतना बड़ा काम नहीं था, ..बिट्टियण्णा के पास काफी सिपाही थे। तलवारों की झनझनाहट और लोगों को भी आकर्षित करेगी, यह सोचकर बिट्टियण्णा ने दक्षिण का द्वार खोल दिया। उसकी अपनी सेना अभी आयी नहीं थी। नगर में लोगों के आने-जाने का भान भी नहीं हुआ। अपनी टोली को किले से बाहर ले जाकर बाहर से दोनों द्वारों को खींच लिया। पूरी तरह बन्द नहीं किया, और फिर दोनों दरवाजों की दरार से अन्दर देखने लगा। द्वार की छत पर अपने सिपाहियों को तैनात करना वह भूल गया था। किले के ऊपर के पहरेवाले एक और चक्कर लगाते हुए जब वहाँ आये तो देखा कि पहरेदारों के मुँह में कपड़ा ठुसा हुआ है। कपड़े को निकालकर उनसे पूछताछ करके हालत जानकर वे अपने अधिकारी को खबर देने दौड़ पड़े। भोर का अँधेरा अभी छटा नहीं था कि पोस्सल सेना दक्षिणी द्वार की ओर बढ़ चली। द्वार खोलकर सेना को नगर के अन्दर भेज देने के लिए सुबह की प्रतीक्षा कर रहा था बिट्टियणा । इतने में जयकेशी की सेना घुस आयी। बिट्टिण्णा ने सांकेतिक रीति से सीटी बजा दी। शंख फूंका गया, परिणामस्वरूप सेना बाढ़ की तरह घुस पड़ी। नगर के भीतर व्यापक स्तर पर युद्ध करने के लिए जयकेशी की सेना तैयार नहीं थी । पोय्सल - सेना ने आक्रमण करते हुए पूर्व के द्वार पर पहुँचकर उसे भी खोल दिया। तड़के ही घोर युद्ध शुरू हो गया। दचिण और पूर्व के द्वार की रक्षा के लिए एकएक टुकड़ी सेना तैनात करके, उत्तर के द्वार को खोलने के लिए पुनः भयंकर युद्ध हुआ। अन्त में पोय्सल सेना की जीत हुई। इसमें सैकड़ों लोगों को जानें गर्यो। तीनों तरफ से आयी पोटसल सेना ने नगर को अपने कब्जे में कर लिया। शत्रुपक्ष के दो प्रमुख सेनापति मात्र गिरफ्तार हुए। शेष मिले नहीं। पट्टमहादेवी शान्तला भाग चार 367
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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