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________________ पूरे दिन प्रतीक्षा की, पर मुडुकुतोरे से कोई नहीं आया। दूसरे दिन भी किसी का पता न लगा। मायण चिन्ता में पड़ गया। उसके मन में यह विचार आया कि किसी दूसरे काम पर उनको लगा देने के कारण शायद वे लोग किसी और तरह की तकलीफ · पड़ गये हों। उसे आशा थी कि वे उसी दिन आ जाएँगे जिस दिन उन्हें देखा था । धीरे-धीरे चलने पर भी मुडुकुतोरे से तलकाडु पहुँचने में एक घड़ी से अधिक समय नहीं लगता। सुबह के बाद में रहा उसने सोचा कि एक खार उस तरफ हो आएँ। फिर उसे लगा कि इससे कोई लाभ नहीं होगा। यों चुपचाप कितने दिन पड़े रहें? कुछ करने की सोची तो वह कुछ का कुछ हो गया। यों ही खापीकर चुपचाप पड़े रहने की उसकी आदत नहीं थी। 'एक बार घोड़े पर सवार होकर हो आऊँ, तो क्या नुकसान है ?' यो सोचकर घोड़े को तैयार किया। तभी व्यवस्था अधिकारी ने उसे खबर भेजी कि अभी तुरन्त आ जाएँ। वह उसी घोड़े पर सवार होकर व्यवस्था अधिकारी से मिलने चला गया । EE 'आदेश हो।" मायण ने प्रणाम करते हुए पूछा । "दो दिन से आपके दर्शन नहीं हुए। रानीजी पूछ रही थीं। जिनकी प्रतीक्षा कर रहे थे, वे मिले नहीं ?" " परसों ही आ जाना था। कल भी नहीं आये, इसलिए उन्हीं को खोज में निकल रहा था कि इतने में बुलावा आया तो इधर चला आया। वास्तव में उनके न आने के कारण मैं भी चिन्तित हूँ ?" "वे लोग यदि आपके कहे अनुसार मुडुकुतोरे में परसों थे, तो वे हमारे अधिकारक्षेत्र से बाहर नहीं जा सकेंगे। सभी अपरिचित लोगों को यहाँ ले आने का हुक्म जारी किया गया है। इसलिए वे आँख बचाकर भी नहीं जा सकेंगे। जानेवाले अपनी पहचान देकर ही जा सकते हैं। परन्तु हमें यह बात भी मालूम हो जाएगी।" " तो मुझे चिन्तित होने की जरूरत नहीं। यही मतलब है न ?" "हाँ!" 11 'अब बुलवा भेजने का कारण ?" "सब बात रानीजी के ही सामने होगी। चलिए, चलें।" दोनों रानीजी से मिलने गये। उनकी देखते ही प्रणाम किया। उनके इशारे पर दोनों दूरस्थ आसनों पर बैठ गये । "हुल्लमय्या जी, बात बता दी ?" रानी ने पूछा। "नहीं, सन्निधान के समक्ष ही बताने के विचार से इन्हें यहीं बुला लाया। जिनकी प्रतीक्षा थी, इनके वे लोग आये नहीं इसलिए ये चिन्तित हैं। मैंने कहा है कि चिन्तित होने की जरूरत नहीं। अब क्या करना है, आदेश दें।" " मेरे पिताजी भी यहाँ होते तो अच्छा होता न?" पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 313
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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