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________________ मेरी पहुँच के बाहर की बातें हैं । मगर मैं मूर्ख नहीं हूँ। यहाँ की रीति-नीतियों को जानने की मैंने कोशिश की है। इधर कुछ समय से मैं भी इन बातों को समझने लगी हूँ। आपके बारे में अन्याय हुआ है, यह भी मैं जानती हूँ। पर मैं आपको न्याय नहीं दिला सकती हूँ। मैं केवल नाम के लिए रानी हूँ।" "यहाँ की सेवा में मुझे मानसिक शान्ति है, तृप्ति है । वास्तव में मेरे प्रति अन्याय हुआ है, ऐसी कल्पना भी मैं नहीं करता।" “आपको शायद कारण दिखता भी नहीं होगा। आपकी निष्ठा ही ऐसी हैं। आपका विश्वास भी ऐसा ही है। ट्रोह की बात आप सोच भी नहीं सकते। फिर भी न्याय से देखा जाए तो बड़े दण्डनायक का पद आपको मिलना चाहिए न? सो नहीं हुआ। पट्टमहादेवीजी के दामाद से पहले, दण्डनायकों की पंक्ति में आपकी गिनती होनी चाहिए थी।" "वह रक्त सम्बन्ध है। दण्डनायकजी के दादा राजमहल के समधी बने। हम उस स्तर के हैं, ऐसे भ्रम में पडका उम पद की आशा हमें रखनी नहीं चाहिए। मुझको क्या कमी है? आपके पूर्ण विश्वास का पात्र हूँ, मेरे लिए बस इतना पर्याप्त है।" "तो बिना छिपाये यह बताइए कि जब आपको नियुक्त कर यहाँ भेजा गया, तब आपको कौन-सा गुप्त आदेश दिया गया था?" "वे आदेश तो सभी अधिकारियों के लिए एक-से होते हैं। मुझे भी वही आदेश दिया गया। परन्तु यहाँ रानी और राजकुमार के रहने से, उनकी सुख-सुविधा और सुरक्षा, राष्ट्र की सुख-शान्ति और सुरक्षा के समान ही मुख्य हैं। इसके लिए सब तरह के त्याग के लिए सदा तैयार रहने का आदेश दिया गया था।" "यह आदेश सन्निधान का था या पट्टमहादेवीजी का?" "आदेश मुझे महाप्रधान ने दिया था।" "बेचारे ! वे पुरानी पीढ़ी के हैं। सब को एक ही दृष्टि से देखते-समझते हैं। ठीक है। अब यह बात रहने दीजिए। आस्था के कारण, या जितना मिले उसी से तृप्त रहने की प्रवृत्ति के कारण, आपके प्रति जो अन्याय हुआ है उस पर आप ध्यान नहीं देते, परन्तु इस बात को जानकर भी मैं कैसे चुप रह सकूँगी? ऐसी कुछ बातें सन्निधान को मालूम पड़ती हैं या नहीं, यह मैं नहीं जानती। उचित समय देखकर मैं अपना कर्तव्य करूँगी!" "अप्रार्थित जो फल मिले वह दैवदत्त फल है, ऐसा मानना चाहिए । मेरा अपना भाग्य। "अच्छा, आगे की याद रहे।" "जो आज्ञा।" रानी ने घण्टी बजायी। द्वार खुला। हुल्लमय्या वहाँ से बाहर चले गये। - . -. --.. 312 :. पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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