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________________ "जब आप कह रही हैं कि मुझे इसका शिक्षण मिलना चाहिए तो यह भी एक अध्ययन ही हुआ न? अन्छा. चलता है. माँ!" लिनयादिर चला गया ! शान्तलदेवी पहाराज को चिट्ठी लिखने बैठ गयीं। शुरू में उन्होंने अपनी हत्या के षड्यन्त्र के बारे में लिखने की बात सोची। कुछ लिखा भी। फिर दुबारा पढ़ा तो उनका मन बदल गया। उन्होंने सांचा, "यह बात लिखू तो सन्निधान के मन में आतंक पैदा हो जाएगा। आतंकित मन में एकाग्रता नहीं रह सकती। एकाग्रता के बिना कोई काम सफल नहीं होगा।" यों सोचकर पत्र में लिखा, "इस गुप्तचर से सारी बातें मालूम हुईं। यह भी अच्छी तरह मालूम हो गया कि अभी स्थिति शीतयुद्ध-सी है। यहाँ से आवश्यक सामग्री बहुत शीघ्र भेजी जा रही है। बिट्टियण्णा के स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान रखेंगे। चिण्णम दण्डनाथ और चन्दलदेवी ने उसे हमें सौंपा था। राती बम्मलदेवी घोड़ों की देखभाल, उनकी चिकित्सा आदि कामों में लगी होगी। इसलिए बिटियागमा की देखरेख का काम राजलदेवी को सौंप सकते हैं । राजधानी में सब ठीक है । मन्दिर का कार्य तेजी से चल रहा है।" आदि बातों के साथ पत्र को समाप्त किया. और उसे रेविमय्या के हाथ में देकर उस समाचारवाहक को दे आने को कहा। पट्टमहादेवी ने राजमहल के नौकर बोकणा को बुलवा भेजा और उसके द्वारा वित्त-सचित्र के पास समाचार भेजा कि वे सुबह राजमहल में तड़के ही आ जाएँ। वित्त-सचिव मादिराज से विचार-विमर्श कर चुकने के बाद उन्होंने सोचा कि यदि आवश्यकता हुई तो प्रधान गंगराजजी को बुलवाकर उससे भी चर्चा कर लेंगे। गंगराज काफी वृद्ध हो गये थे, इसलिए एक तरह से विश्रान्त जीवन ही व्यतीत कर रहे थे। बहुत जरूरी बातों पर ही पट्टमहादेवी उनसे सलाह लिया करती थीं। रेविमय्या और वोकणा के चले जाने के बाद, शान्तलदेवी युद्ध शिविर के लिए भेजी जानेवाली आवश्यक सामग्री का संग्रह कैसे किया जाए, इस बारे में सोचती हुई अपने विश्वामागार में पलंग पर चित लेट गर्यो । उनका शान्त मन सतर्क हो गया था। कितना हो दृढ आत्म-विश्वास हो, 'हत्या' के षड्यन्त्र की याद आते ही वह उद्विग्न हो उठत्तीं। सोचने लगतीं, 'यह दुनिया भी कैसी विचित्र है ! मुझे मार डालने लायक कौन-सा कार्य मैंने किया? इस तरह की नीच वृत्ति के पनपने का क्या कारण हो सकता है? अथवा मैंने अनजाने ही कोई अकरणीय कार्य किया है ?' एक के बाद एक गुजरे जीवन की घटनाएं स्मरण करती रहीं। उन्हें अपने माता-पिता की कोई गलती न होने पर भी दण्डनायिका चापध्ये ने क्या सब किया, याद आया। फिर भी दण्डनायिका ही हार गयो । सत्यनिष्ठ का कोई अनिष्ट नहीं हो सका। अब भी वही बात है। मैं क्यों आतंकित होऊँ ?...फिर भी एक का स्वार्थ दूसरे के अनिष्ट का कारण हो सकता है। यह मानव भी कितना नीचे गिर जाता है ! पशु-पक्षियों में विवेचना की सामर्थ्य नहीं, सही। मगर विवेचनाशक्ति युक्त मानव विवेकशून्य होकर इस तरह का आचरण करने 290 :: पट्टमहादेवा शन्तला : भाग चार
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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