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________________ रह जाने के कारण केवल खर्चा ही खर्चा है। अब वर्षा आरम्भ हो जाए तो फिर फसल काटने के समय तक हमारे शिविर को सक्रिय रहना होगा। तब तक के लिए पर्याप्त हो सके, इतनी सामग्री बुद्ध-शिविर में तुरन्त पहुँच जानी चाहिए। इसमें विलम्ब हुआ तो हम मुसीबत में पड़ जाएँगे। हमारा भविष्य इस पर निर्भर करता है कि सामग्री कब पहुँचती है। इसलिए अनिलाल व्यवस्था होनी चाहिए।" "सन्निधान का स्वास्थ्य कैसा है ?" "अच्छा है। दण्डनायक बिट्टियण्णाजी का स्वास्थ्य कुछ अच्छा नहीं रहा। महासन्निधान ने राजधानी लौटने पर जोर दिया। मगर उन्होंने माना नहीं। वैद्यजी और महारानियाँ अच्छी तरह देखरेख कर रही हैं। उनकी कोई पेचीदी समस्या नहीं। कुछ घोड़ों को संक्रामक रोग लग गया था। उन्हें दूर वन-प्रदेश में रखकर चिकित्सा करानी पड़ी। महारानी बम्मलदेवी प्रतिदिन वहाँ जाकर देखभाल एवं उपचार कर आती हैं। वे फिर युद्ध के काम में आ सकेंगे या नहीं, कहा नहीं जा सकता। इसलिए अश्वारोही अनन्तपाल नायक को अश्व-दल के लिए कुछ और घोड़ों की भर्ती का आदेश दिया गया है।" "ठीक है। सन्निधान का कोई पत्र नहीं?" "मेरे हाच कुछ भेजा नहीं।" "कौन-कौन-सी सामग्री कितनी चाहिए, आदि बातों का विवरण तैयार कर भेजा है?" "नहीं। हमारी तरफ के हताहत सैनिकों की संख्या नगण्य होने के कारण, मंचियरसजी ने आदेश दिया कि यह सब वित्त-सचिव को मालूम है।" "यहाँ से एक पत्र दूंगी। उसे लेकर तुम लौट सकते हो।" "जो आज्ञा। मैं वित्त-सचिव से मिलकर..." बीच ही में शान्तलदेवी ने कहा, "जरूरत नहीं, व्यवस्था हो जाएगी, इतना भर सन्निधान को बता देना और मैं जो पत्र दूंगी उसे सन्निधान को दे देना। आध घण्टे में पत्र तुम्हारे मुकाम पर पहुँच जाएगा। इस बीच तुम रवाना होने की तैयारी करो।" कहकर घण्टी बजायी । मन्त्रणागार का दरवाजा खुला। गुप्तचर प्रणाम कर चला गया। अनन्तर शान्तलदेवी वहाँ से उठी और विनयादित्य को साथ लेकर अपने विश्रामागार में गयीं । वहाँ उन्होंने विनयादित्य को समझाया कि युद्ध के क्या परिणाम होते हैं, उससे राज्य की आर्थिक स्थिति पर कितना बोझ पड़ता है आदि। फिर कहा, "अभी मेरे साथ समय व्यतीत करने से शायद तुम्हारे अध्ययन में बाधा पड़ रही हो। फिर भी तुम्हें अभी से एक-एक कर इन बातों की तथा राजनीतिक विषयों की जानकारी प्राप्त करते रहना अच्छा है, यही सोचकर तुम्हें बुलवाया था। अब तुम अपने अध्ययन के लिए जा सकते हो।" पट्टमहादेवो शान्तला : भाग चार :: 289
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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