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________________ ------- nilor -- - Repaiksinutra भौजाई। इसलिए मौन रहना अच्छा है।" "तुम कोई गरीब तो नहीं हो न? तुम्हें किस बात की कमी है? तुम्हारी निष्ठायुक्त सेवा से सन्तुष्ट होकर राजमहल ने तुम्हें तुम्हारे अपने गाँव में काफी जमीन-जायदाद दे रखी है।" "मुझे जमीन-जायदाद की क्या जरूरत है ? न जोरू, न बच्चे । कुछ भी तो नहीं। मेरा वंश तो परे साथ ही खतम । कभी एक बार पट्टमहादेवाजो के मन में मेरे ऊपर दया हो आयी। तब वे छोटी ही भी उनकी उस दिन को कृष्णा ने तक मुझे यहाँ बाँध रखा है। मेरा जीवन उनकी चरण-सेवा में ही समाप्त जब होने को है तो मुझे वह सब नहीं चाहिए। मैंने उनसे यह कहा भी था तो पट्टमहोदेवीजी ने कहा था कि एक निष्ठायुक्त प्रज्ञा को महाराज यदि कुछ देते हैं तो उसे सहर्ष शिरोधार्य कर लेना चाहिए. इनकार नहीं करना चाहिए। नाम मात्र के लिए बह जमीन मेरे नाम पर है। परन्तु उससे जो भी फल-फसल मिलती हैं वह सन्त्र भगवान् की सेवा-कैंकर्य के लिए धरोहर के रूप में रख छोड़ी है । अप्पाजी, जैसा आप कहते हैं, मैं गरीव नहीं हैं। उस करुणामयी माँ की कृपा मुझ पर जब तक है, तब तक मैं कदापि गरीब नहीं। परन्तु मैंने राजमहल में कई दशाब्दियाँ बितायी हैं। इससे एक पाठ मैंने सीखा है। राजमहल के सगेसम्बन्धियों के विषय में मैं कुछ नहीं बोलूँगा, कभी भी।" "यह वात पहले ही बता देते तो इतनी सारी बातें ही नहीं होर्ती ?" "मैंने ऐसा कुछ नहीं सुना जिसे सुनना नहीं चाहिए. अप्पाजी! आपके इस छोटे-से निर्मल हृदय में इस तरह की भावना यदि उत्पन्न हुई तो इसका कोई बड़ा कारण होना चाहिए. यह मुझं लग रहा है। उसे जानने के लिए मैंने प्रश्न किया। उचित समझें तो बताएँ।" "तुम मुँह बन्द करके बैट जाओ तो मैं क्या कहूँ?" "आपकी हर समस्या का उत्तर मिलेगा, ऐसा तो तय नहीं हुआ न?'' "वह तो तुम करनेवाले नहीं।" "मरे न बोलने मात्र से आपने यह कैसे समझ लिया?" विनयादित्य के मुँह से तुरन्त कोई बात नहीं निकली। वह टकटकी लगाकर रेविमय्या के झुरीदार चेहरे को देखने लगा। विनवादित्य को मौन देखकर रेवियय्या ने पूछा, "क्यों अप्पाजी, मेरी बातों पर विश्वास नहीं है?" "विश्वास नहीं. ऐसी बात नहीं। बताओ मुझे उत्तर कहाँ मिल सकता है?" "पदमहादेवीजी से आपको सही उत्तर मिल जाएगा, अप्पाजी!" ''ती वय। माँ सं पूछन को कह रहे हो?'' "हाँ।" a:-. .-Navita:-- S H REEn7ERAL 218:: पट्टी वान्नाला · भाग हार
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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