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________________ विनयादित्य ने रेविमय्या से एकान्त में बात छेड़ी। उसने कहा, ''रेविमय्या, मेरे मन में एक शंका है। वह ठीक है या गलत, सो मालूम नहीं। तुम बता सकोगे, मुझे लगता है।" कहकर वह रुक गया। "आधी बात कहकर रुक जाओ तो उत्तर कैसे दे सकूँगा, अप्पाजी?" "हमारी सौतेली माँ रानी लक्ष्मीदेवीजी स्वभाव की कैसी हैं, रेविमय्या?" "इस बारे में स्वयं अप्पाजी की क्या राय है?" "मुझे लगता है कि वे कुछ ईर्ष्यालु हैं।" "ऐसा क्यों?" "यह तो मालूम नहीं क्यों? वे जब दूसरों को देखती हैं तब ऐसा लगता है कि उनकी दृष्टि सहज नहीं। लगता है कि कुछ शंका है उन्हें, और कुछ खोज रही हैं।" "अप्पाजी, अभी आप सोलह के भी पूरे नहीं हुए। अभी से दृष्टि का अर्थ निकालने लगे?" "मैं अर्थ नहीं निकाल रहा, माँ नृत्य सिखाती थी तो अनेक बार मैं उसे देखा करता था। मैं छोटा था, इसलिए मेरे वहाँ जाने पर कोई रोक-टोक नहीं थी। तब माँ दिखाया करती थीं कि दृष्टि से किस तरह भिन्न-भिन्न अर्थ निकलते हैं। और स्वयं करके दिखाया करती थीं और छात्रों से करवाकर, उस दृष्टि का अर्थ बताती। मैं भी जब अपने विश्राम-कक्ष में अकेला होता तब आईने के सामने खड़े होकर, आँखें उसी तरह बनाता और दृष्टि का अर्थ ग्रहण करने लगता। इसलिए मुझे उनकी दृष्टि को परखने का जब कभी मौका मिलता है, तब ऐसा ही लगता है। मैं ठीक कह रहा हूँ न?" "पट्टमहादेवीजी ने स्वीकार किया तभी न चे रानी बनी?" "माँ को एक तरह का धीरज है, आत्मविश्वास है। यह कि चाहे कोई कैसा भी हो, उन्हें वह अच्छा बना लेंगी। इसलिए उन्होंने इस बारे में ठीक तरह से सोचविचार नहीं किया, ऐसा प्रतीत होता है।" "केवल बाहरी तौर पर व्यक्ति की परख नहीं हो सकती। उसके अन्तरंग तक पहुँचने की योग्यता होनी चाहिए-पट्टमहादेवीजी के इस कथन को आपने सुना नहीं?'' "सुना है । इस तरह की सिद्धि पाने के लिए अनुभव भी तो होना चाहिए-यह भी वे कहती हैं। तुमसे पूछना और सुनना उस अनुभव को पाने का मार्ग ही तो है।'' "अप्पाजी, आपके मन में ऐसा भाव उत्पन्न होने के पीछे वही एक कारणा है. या दूसरा और भी कोई है?" "क्यों रेविमय्या, मेरे प्रश्न का सीधा उत्तर न देकर, कुछ और ही पूछकर बात को टाल रहे हो न?" "ऐसा नहीं, अप्पाजी ! एक कहावत सुनी है? गरीब की जोरू, गाँव भर की पट्टमहादेत्री शान्तला : भाग चार :: 277
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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