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________________ उठकर बाहर आ गयी। उसे कुछ सूझ नहीं रहा था, वह उसी सवतिगन्धवारण बसदि की दीवार से सटकर खड़ी हो गयी। थोड़ी देर तक उसी एकाग्न भावना में डबे बिट्टिदेव खड़े रहे, फिर संसार को जीतने वाले उस बाहुबली स्वामी को दण्डवत् कर मौन हो, छोटी पहाड़ी से उतरकर अपने निवास पर आ गये। लक्ष्मीदेवी उनका अनुसरण करती हुई चली आयी। फिर नियोजित रीति से यात्रा शुरू हुई और इस प्रकार महाराज रानी के साथ दोरसमुद्र जा पहुँचे 1 क्ष्मीदेवी हिकाती १६ बुद्र न. २१1 में पहुंची। परन्तु द्वार पर उसके बेटे का जो वैभवपूर्ण स्वागत हुआ उसे देख वह आश्चर्यचकित हो गयी। स्वयं पट्टमहादेवी ने आगे बढ़कर राजकुमार के उस सुन्दर मुखड़े को मंगलद्रव्य से सजाकर आरती उतारी, नजर उतारी, और आशीर्वाद दिया, "बेटा सुखी रहो, सौ बरस जीओ और पोय्सल वंश की कीर्ति उजागर करो। जन्म के दिन ही राज्य को विजय प्राप्त कराने वाले भाग्यवान् हो तुम। श्री आचार्यजी से आशीर्वाद पानेवाली अपनी माँ की ही तरह तुम भी भाग्यवान् हो।'' कहकर बालक नरसिंह का माथा चूमा और कहा, "चलो लक्ष्मी, यात्रा से थकी होगी, चलकर आराम करो। चन्दला! रानीजी और राजकुमार को उस विश्रामगृह में ले जाओ जो उनके लिए व्यवस्थित है।" उनका स्वर आत्मीयता से ओत-प्रोत था। मायके आनेवाली बेटी को जैसा आत्मीयतापूर्ण स्वागत माँ से मिलता है, वैसा ही स्वागत लक्ष्मीदेवी और कुंवर नरसिंह को मिला। विट्टिदेव मौन हो यह सब देख रहे थे। रानी लक्ष्मोदेवी और राजकुमार के अन्दर चले जाने पर उन्होंने पूछा, "विनयादिल्य का स्वास्थ्य कैसा है?" "अभी बुखार उतरा नहीं। नियमानुसार औषधोपचार चल रहा है।" "फिर भी उसे छोड़कर यहाँ आकर यह स्वागत करना चाहिए था? जब कोई अपने घर आए, तब स्वागत करने का यह शिष्टाचार क्यों? दूसरे कोई करते तो भी चल जाता।" "पोय्सलवंश का एक और अंकुर पहली बार राजमहल में आए तो यह स्वागत आवश्यक है। इतना ही नहीं, यह मांगलिक आचरण है।" "अभी यह सब क्यों? पहले कुमार को देखना चाहिए।" कहते हुए उन्होंने कदम आगे बढ़ाया। शान्तलदेवी उनसे भी आगे कदम बढ़ाती हुई चलने लगों तो बिट्टिदेव ने उनका अनुगमन किया। बच्चे के पास वैद्यजी थे। महाराज और पट्टमहादेवीजी को आते देख वह उठ खड़े हुए। विनयादित्य सो रहा था। पट्टमहादेवी शान्टला : भाग चार :: 249
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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