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________________ 'सीताजी की कहानी बताते हुए इसी बहाने कैकेई की कथा सुनायी होगी । मन्थरा की भी कहानी कही होगी ?" "हाँ, सो भी बताया था। कौन अच्छे, कौन बुरं - यह तो मालूम होना ही चाहिए 14 "न?" " दोनों को जान सकते हैं। परन्तु क्या करना, क्या नहीं करना, यह मुख्य बात हैन ?" "ऐसा होने की सम्भावना के ही कारण यह अनचाहा प्रसाद गले नहीं उतरा । मुझे मालूम है कि यह शान्तिनाथ नाम केवल आँखों में धूल झोंकने के लिए हैं। यह सौतों के दमन के लिए प्रतिष्ठित एक भूत है। मैं इस भूत से हार नहीं मानूँगी। मैं कोई छोटी बच्ची नहीं, मैं सब समझती हूँ ।" "किसने तुमसे कहा कि यह साँतों का दमन करने के लिए बना है ?" "ऐसा न होता तो पट्टमहादेवी जो को 'उद्वृत्त सवतिगन्धवारण' के नये नाम सेविभूषित होने की क्या जरूरत थी?" 14 "किसने बताया कि इस नाम को नये तौर से धारण किया ?" " जिसे यह मालूम हुआ उसी ने बताया।" "देखो, बिना समझे बूझे अज्ञान के कारण यों चलोगी तो राजमहल में अब तक जो शान्ति रही वह नहीं रहेगी। उस अशान्ति का कारण तुम ही बनोगी। दो बातें जान रखो। पट्टमहादेवी के लिए तुम पहली सौत नहीं हो। तुमसे बड़ी दो और हैं। इसके अलावा, यह परम्परा से पोटसल पट्टरानी को प्राप्त विरुद हैं। नये सिरे से नाम धारण करने की बात ही नहीं।" .. "सन्निधान का कथन सत्य हो सकता है। फिर भी मेरी ऐसी धारणा भी निराधार नहीं। पहले ही से एक न एक रीति से मुझ पर और मेरे पिता पर पट्टमहोदवीजी असूया का भाव रखती आयी हैं। हमें बुरा बताने के लिए कोई-न-कोई माँका तलाश कर सन्निधान के मन में अन्य अधिकारियों के भी मन में तथा प्रमुख पौरों में, इतना ही क्यों, स्वयं आचार्यजी के भी मन में गलत विचार पैदा करने का प्रयास किया गया है। सन्निधान न्याय रीति से स्वस्थ चित्त होकर विचार करें और तब निर्णय करें। सदा युद्धक्षेत्र में मृत्यु से लड़ने वालों को ये सारे कुतन्त्र जानने-समझने का अवकाश ही कहाँ मिलता है ?" "ऐसा! तो मतलब यही हुआ कि बेकार बैठे आलसियों के दिमाग को अण्टसष्ट बातें कुयुक्तियाँ, कुतन्त्र - यही सब सूझते रहते हैं। चोट लगे बिना अकल ठिकाने पर नहीं आती। हम क्यों अपना गला फाड़ें। यदि यह प्रसाद गले उतरता नहीं तो छोड़ दो। कोई जोर-जबरदस्ती नहीं।" कहकर किसी उत्तर को प्रतीक्षा किये बगैर निकल आये और सामने वियगिरि की ओर देखते खड़े हो गये। रानी लक्ष्मीदेवी भी 248 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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