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________________ नागिदेवण्णाजी को समझा दी हैं।" "ठीक" तिरुवरंगदास ने इतना ही कहा। फिर भगवान के दर्शन कर, शहजादी की समाधि को देखकर बिट्टिदेव और लक्ष्मीदेवी लौट गये। दूसरे दिन तड़के ही राज-परिवार दोरसमुद्र की ओर रवाना हुआ। बिट्टिदेव ने अपनी इस यात्रा में दो दिन बेलुगोल में ठहरने का कार्यक्रम बनाया था। वह जहाँ भी चे वहाँ री सदमीत्री चुपचाप उनके पीछे जाती रही। यों उसे उस भव्य बाहुबली की मूर्ति को देखना पड़ा जिसे उसने अब तक नहीं देखा था। वहाँ से दोपहर के बाद कटवप्र पहाड़ी पर चढ़कर वहाँ की चामुण्डराय बसदि, चन्द्रगुप्त बसदि, कत्तले (अंधेरी) बसदि आदि देखकर अन्त में सवतिगन्धवारण बसदि पर बिट्टिदेव पहुंचे। वहाँ शान्तिनाथ स्वामी की पूजा-अर्चना हुई। इसके बाद आरती उतारी गयो । लक्ष्मीदेवी को वहाँ भी उपस्थित रहना पड़ा। यह वहाँ ऐसी रही मानो काँटों पर खड़ी हो। पजारीजी के आग्रह से मुखमण्डप में राजदम्पती बैठ गये। महाराज के पधारने की खबर पहले ही मिल चुकी थी, इसलिए प्रसाद की विशेष व्यवस्था की गयी थी। उनके बैठने के थोड़ी देर बाद चाँदी की थाली में प्रसाद लाया गया। प्रसाद लेते हुए बिट्टिदेव ने कहा, "यही बह शान्तिनाथ स्वामी की बसदि है जिसे हमारी पट्टमहादेवी ने इसने शौक से बनवाया है। इस मूर्ति की प्रतिष्ठा के समय तुम नहीं आयी। बच्चे की अस्वस्थता का बहाना किया था। परन्तु अब तुम्हें अपने कुमार के साथ यहाँ आना ही पड़ा, देखो।" लक्ष्मीदेवी ने चारों ओर आँखें दौड़ायीं। "डरो मत, यहाँ आड़ में रहकर सुननेवाला कोई नहीं है। सब बसदि से बाहर चले गये हैं।" लक्ष्मीदेवी थाली की ओर देख प्रसाद का एक-एक टुकड़ा लेकर मुंह में डालती रही। ___ "कुछ नहीं होगा। सहज रीति से खाओ न जैसे हम खा रहे हैं ! शान्तिनाथ स्वामी के इस प्रसाद के खाने से चंचल मन को शान्ति मिलेगी।" लक्ष्मीदेवी को हिचकी आ गयी। मुंह के अन्दर से प्रसाद नीचे गिर गया। आँखों से आँसू निकल आये। बिट्टिदेव ने सिर्फ देखा, कहा कुछ नहीं। पानी का लोटा आगे सरका दिया। लक्ष्मी देवी ने दो चूंट पानी पिया। "एक कहावत सुनी है?" लक्ष्मीदेवी ने प्रश्नार्थक दृष्टि से उनकी ओर देखा। "कहावत है-अनिच्छुक पति को दही में भी कंकड़ मिल जाते हैं।" 2463: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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