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________________ पट्टमहादेवी हैं न, उनसे ही पूछ लें।" लक्ष्मीदेवी बोल गयी। "लक्ष्मी!" बिट्टिदेव गुस्से से गरजे। लक्ष्मी क्षणभर के लिए काँप उठी। बोलो, "मैं एक गरीब ब्राह्मण की बेटी हूँ। झाड़-बुहार, लीपना-पोतना, खाना बनाना, बरतन-बासन धोना, यह छोड़कर दूसरा क्या काम कर सकती हूँ। गाना-बजाना नहीं जानती, नाचना नहीं मालूम, शास्त्रों का अध्ययन नहीं किया. शस्त्रास्त्र क्या चीज है सो नहीं जानती। यह सब मैं कुछ नहीं जानती। अब तो मुझे केवल एक बात मालूम है कि मैं माँ हूँ। अपने बच्चे की रक्षा माँ की हैसियत से मुझे करनी है।" वह जल्दी में कह बैठी। कहने के ढंग से ऐसा लग रहा था कि इन बातों को कोई जबरदस्ती उसके मुंह से निकलवा रहा है। "तुम्हें यह मालूम है कि तुम क्या कह रही हो?" "सन्निधान भ्रम में पड़कर अन्धे हो सकते हैं। मैं न अन्धी हूँ, न बहरी । देख सकती हूँ, सुन सकती हूँ।" "देखी-सुनी बातों के अर्थ का अनर्थ करनेवाले कुमतियों की प्रेरणा से वस्तुस्थिति की जानकारी नहीं होती। अब तुम मुँह बन्द करो। शायद सोचती होगी कि हम कुछ नहीं जानते ! गुप्त रोति से बातचीत कर लेने और अण्ट-सण्ट कल्पना कर सकने की प्रवृत्ति तुम्हारी हो गयी है। हम सब कुछ जानते हैं। तुम्हें और तुम्हारे उस मूर्ख पिता को अकारण ही कष्ट न देने के इरादे से और लोगों के सामने तुम्हारी पोल खुल न जाए, इस वजह से हम सब सहते आये हैं। अब तक जो उदारता हमारी ओर से पायी सो आगे भी मिलती रहेगी, अब ऐसा विश्वास नहीं रखना। अपने किसी लक्ष्य को साधने के उद्देश्य से कुछ न जाननेवाले बेचारे आचार्यजी के बारे में भी कुछ अजीब राय पैदा करने की कोशिश की जा रही है। यह भी हमें मालूम है कि उनके अनुयायी यह कहते फिर रहे हैं कि धर्म-प्रचार के लिए आन्दोलन चलाने का आदेश आचार्यजी ने दिया है। यह भी कहते फिर रहे हैं कि उनकी अनुपस्थिति में यह काम हो तो उन्हें इसका कलंक भी नहीं लगेगा। और भी जो खबरें हमें मिली हैं वह सब सुनानी होंगी?"-बिट्टिदेव ने बड़े कड़े होकर कहा। लक्ष्मीदेवी की नाक पर पसीने की बूंदें आ गयीं। वह कुछ भी नहीं बोल सकी। "हमारा यही निर्णय है। रानी को हमारे साथ चलना होगा। यदि रानी इसके लिए तैयार न हों तो रानी के पिता को देश से निकाल दिया जाएगा। इन दो बातों में रानी चाहे जिसे चुन लें। अभी एक-आध प्रहर में ही हमें बता दें।" इतना कहकर बिट्टिदेव मुड़कर देखे बिना वहाँ से चल दिये। रानी लक्ष्मीदेवी ने मुद्दला से अपने पिता को बुलवा भेजा। उसने आकर बतलाया कि वे यदुगिरि गये हैं। अब वह किससे सलाह ले? यों सोचती बैठी रही। बिट्टिदेव को एक-एक बात 244 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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