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________________ पट्टमहादेवीजी के आदेश का पालन करना मेरा सेवा-धर्म है। गुरु की आज्ञा का उल्लंघन भी नहीं कर सकता। फिर भी मैं आचार्यजी का आदेश पट्टमहादेवी के समक्ष निवेदन करूंगा। यदि वे ऐसा करने की स्वीकृति दे दें तो खुशी से यहाँ के काम में लग जाऊँगा।" नागिदेवण्णा ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी। "सो भी ठीक है। वही कीजिए। 'आचार्यजी ने कह।। फिर :-चार क्षण मौन रहकर पूछा, "रानी लक्ष्मीदेवी जाएँगी न?" । नागिदेवण्णा ने कहा, "मेरे पास कोई आदेश नहीं आया यादवपुरी के राजमहल से 1 आजकल वे मुझसे किसी भी बारे में पूछती-कहती नहीं। राज-काज के सिलसिले में उनसे मिलने का कोई अबसर भी नहीं आया। समाचार लाने वाले से शायद कुछ कहा हो। वह मेरे साथ यहाँ आया है, बुलवाऊँ?" "कोई जरूरत नहीं । वह उनसे सम्बद्ध बात है। यों ही प्रसंगवश पूछ लिया।" आचार्यजी ने बात वहीं समाप्त कर दी। आचार्यजी की अनुमति पाकर नागिदेवण्णा ने दोरसमुद्र जाकर लौटने की खबर यादवपुरी भेज दी और स्वयं राजधानी की ओर पत्रवाहकों के साथ रवाना हुए। पट्टमहादेवीजी से मिले। यादवपुरी की सारी बातें भी बतायीं। उन्होंने कोई आक्षेप नहीं किया। उनकी बातचीत से इतना स्पष्ट हो गया कि राजकार्य से सम्बन्धित लोगों के साथ रानी लक्ष्मीदेवी किसी तरह का सम्पर्क नहीं रखती हैं। बाकी खबरें शान्तलदेवी को बराबर मिल हो रही थीं, इसलिए उन्होंने पूछताछ नहीं की। ____ अन्त में पट्टमहादेवी ने आदेश दिया, "आचार्यजी का कहना गलत नहीं हैं। बेलुगोल आने में जो असुविधा की बात कही, वह भी ठीक है। इसलिए आप बहीं रहे और वहाँ के सभी कार्यों में अपना पूरा सहयोग दें। यगिरि एक छोटा गाँव है। इस प्रतिष्ठा के समारम्भ में हजारों लोगों के आने की सम्भावना भी है। जब यह समाचार लोगों तक पहुँच जाएगा कि महाराज पधार रहे हैं, तब इर्द-गिर्द के चारों ओर से लोग वहाँ जमा हो जाएंगे। इसलिए आपका उत्तरदायित्व बहुत बड़ा है। यदि आवश्यकता हो तो यहाँ से और दो-चार अधिकारियों को तथा और अन्य लोगों को भी साथ लेते जाइए। आचार्यजी के लोक-सेवा के कार्य में राजमहल की पूरी सहायता होनी चाहिए, यह हमारा धर्म है।'' उधर यदुगिरि में, इधर चन्द्रगिरि के नाम से प्रसिद्ध कटवप्र, बेलुगोल में प्रतिष्ठा के समारम्भ की तैयारियां जोरों से होने लगी। पट्टमहादेवी ने महाराज को सूचना दी थीं कि वह स्वयं एक पखवाड़े तक बेलुगोल में रहेंगी। इसलिए पहाराज रानियों--- बम्मलदेवी और राजलदेवी के साथ सीधे बेलुगोल ही पधारे। वहीं उनका वीरोचित स्वागत भी किया गया। शालि शक संवत् 1045 शुभकृत संवत्सर आरम्मा के गुरुवार के दिन शुभ-मुहूर्त पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 229
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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