SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शहजादी के साथ उधर पहुँचे और नागिदेवण्णा से बोले, "शिल्पी कहते हैं कि मन्दिर का कार्य एक महीने में पूरा कर देंगे। चेलुवनारायण की प्राण-प्रतिष्ठा का निमन्त्रण महाराज के पास जाना चाहिए न?" "जैसी आपकी आज्ञा ।" नागिदेवण्णा ने कहा। शहजादी ने, जो साथ ही थी, पूछा, "पट्टपहादेवीजी को भी निमन्त्रण जाएगा न?" "उनका अनुपस्थिति में यह प्रतिष्ठा-समाराम कैसे हो सकेगा, राजकुमारी जी?" आचार्यजी तुरन्त बोले। "सन्निधान की उपस्थिति ही सनकी उपस्थिति नहीं मानी जा सकेगी?" रानी लक्ष्मीदेवी ने अपनी तरफ से जोड़ा। "महाराज की उपस्थिति में जो काम होगा वह और है; पट्टमहादेवीजी के रहते जो काम होगा सो और है।" आचार्यजी ने कहा। "मैं रानी हूँ। वह काम मैं नहीं कर सकूँगी?" लक्ष्मीदेवी ने पूछा। "कोई किसी कार्य के लिए उपयुक्त होता है और कोई किसी कार्य के लिए। इसके यह माने नहीं कि तमसे नहीं होगा। हम जब तक इस राज्य में हैं तब तक हमारे सभी कार्यों में उन दोनों जनों की उपस्थिति रहनी ही चाहिए, ऐसी हमारी इच्छा है।" आचार्यजी बोले। ___'बात वहीं रुक गयो। कुछ क्षणों तक वहाँ मौन छाया रहा। बाद में आचार्यजी ने कहा, "नागिदेवण्णाजी, यहाँ इस मूर्ति-प्रतिष्ठा का समारम्भ समाप्त होते ही हम अपनी जन्मभूमि की तरफ रवाना हो जाना चाहते हैं। शायद इस प्रतिष्ठा महोत्सव के अवसर पर राज-दम्पतियों के जो दर्शन होंगे वही अन्तिम दर्शन हो सकते हैं, इसलिए किसी भी तरह से उन दोनों के यहाँ पधारने की व्यवस्था कराएं।" "शहजादो तब आचार्यजी के साथ ही जाएंगी?" लक्ष्मीदेवी ने पूछा। "मैं आयी थी रामप्रिय के पीछे, आचार्यजी के पीछे नहीं। इसलिए मैं कहीं नहीं जाऊँगी। यही मेरी स्थायी जगह है।" शहजादी ने कहा। ___ "आचार्यजी के साथ होती तो किसी बात की कमी नहीं रहती। साथ ही उनकी संरक्षकता भी बनी रहती। यहाँ अन्य धर्मियों के बीच आपका अकेली रहना..." "उचित नहीं? शायद आप सोचती होंगी कि अकेली रहने पर कई समस्याएँ मेरे लिए हो सकती हैं। यही न?" शहजादो ने सवाल किया। 'स्वाभाविक ही है। आप इस्लाम धर्मी हैं। इस धर्म का यहाँ कोई नहीं। इसलिए..." "क्यों लक्ष्मी,, तुम्हें इस तरह का डर क्यों ? उनक यहाँ रहने से व्यक्तिगत रूप से तुम्हें कोई बाधा है?" आचार्यजी ने पूछा। पट्टमहादेवी शान्ता : भाग चार :: 225
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy