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________________ चाहतो | इसलिए अभी शिलालेख की आवश्यकता नहीं। हाँ, उसमें क्या लिखना होगा सो तैयार कर रखें। बाद में सुविधानुसार उसे उत्कीरित करवाकर कहीं लगना देंगे।" "सो भी ठीक है। जैसा तुमने कहा, एक प्रारूप तैयार कर रखूंगा और बच्चे का नामकरण आचार्यजी के ही द्वारा सम्पन्न हो, इसलिए यदुगिरि जाना होगा। " " वही कीजिए।" उनके अनुएक शुभ रंगदास, रानी लक्ष्मीदेवी और नवजात शिशु यदुगिरि के लिए रवाना हुए। खबर पाकर आचार्यजी खुश हुए और बोले, " एक-एक मन्दिर महाराज की एक-एक विजय की गवाही दे रहा है। तलकाडु में कोर्तिनारायण तो वेलापुरी में विजयनारायण । विजय के दिन ही पुत्रोत्सव होने के कारण उस राजकुमार का नाम भी विजयनरसिंह ही रखा जाएगा, यह सुनकर हमें बहुत खुशी हुई। नरसिंह हमारे इष्टदेव हैं जिनकी हम प्रतिदिन पूजा करते हैं। इसलिए यह नाम हमें प्रिय हैं। श्रीवैष्णव होकर महाराज के विजय के ही दिन जन्म लेनेवाला यह राजपुत्र अपने नाम को सार्थक करे। इस नामकरण से हमारी आत्मा बहुत सन्तुष्ट हुई है। शुभ मुहूर्त में यहीं नामकरण कर देंगे।" तुरन्त नागिदेवण्णा के पास सन्देश भेजा गया। नामकरण के लिए तैयारियाँ होने लगीं । आचार्यजी ने सूचित किया कि पट्टमहादेवीजी के पास निमन्त्रण भेजा जाए तो लक्ष्मीदेवी ने कहा, "सन्निधान ही नहीं आ सकेंगे। कहला भेजा है कि यथोचित रीति से नामकरण संस्कार करवा दें। जब वे स्वयं उपस्थित नहीं होंगे तो बाकी लोग न भी हों, क्या हर्ज है। पट्टमहादेवी को खबर भेज दें कि कुछ समय इसके लिए निकाल सकेंगी या नहीं। फुरसत पाकर आ जाएँ तो ठीक, नहीं तो अनावश्यक विलम्ब ही होगा।" 'अब तक इस राजमहल में नामकरण उत्सव केवल पारिवारिक संस्कार के ही रूप में मनाया जाता है, इसलिए रानीजी का कहना ठीक है। पास में दण्डनायिका एचियक्का जी तो हैं ही। वे सन्निधान की समधिन भी हैं। उन्हीं को बुलवा लेंगे।" नागदेवण्णा बोले | 16 व्यवस्था के अनुसार राजकुमार का नामकरण शुभकृत संवत्सर में ही सम्पन्न हुआ । आचार्यजी का आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ। नामकरण समारम्भ का मांगलिक कार्य बुजुर्ग की हैसियत से एचियक्का ने किया। रानी लक्ष्मीदेवी सचमुच खुश थी। शिशु यदि हाथ-पैर हिलाये तो समझती कि पिता ही की तरह महावीर बनेगा, इसीलिए तो हाथ-पैर फुर्ती से हिला रहा है। सच है, माताओं की सारी अभिलाषाएँ सन्तान के भविष्य पर ही अवलम्बित रहती हैं। नामकरण के एक-दो दिन बाद एक दिन आराम से बैठे इधर-उधर की बातें जब हो रही थीं तो आचार्यजी मन्दिर निर्माण के कार्य का निरीक्षण करते हुए उस 224 पट्टमहादेवी शान्तला भाग चार
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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