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जी के मायके में रहना पड़ा था। वहाँ भी पिरियरसी और मारसिंगय्या हेगड़े जी के शोल पर कलंक लगाने के इरादे से ऐसी ही बातें लोगों में फैलायी गयी थीं। साध्वियों पर ऐसे आरोप लगने पर वे तो कोई भी प्रतिक्रिया दिखाये बिना चुपचाप दुख सह लेंगी, लेकिन वह दु:ख उन कहने वालों के लिए शाप बन जाता है। इसीलिए कहा गया है कि करनेवाले का पाप कहनेवाले पर लगता है। करने वाले का पाप कहने वाले भर जब लगता है तो जो पाप करते नहीं उन पर झूठा आरोप लगाने वालों की क्या दशा होगी ? ' हम देवभक्त हैं; केशव, नारायण के नाम स्मरण को छोड़कर हमारी जिल्ला और कुछ उच्चारण नहीं करेगी' कहते हुए मीलभर दूर से दिखाई पड़ सके, ऐसे मोटेमोटे तिलक चेहरे पर लीप-पोतकर चोरी छुपे जनसामान्य में झूठी खबरें फैलने वालों के लिए कौन-से नरक का सृजन हुआ है, भगवान् ही जाने। इसलिए आप लोगों से यही विनम्र निवेदन है कि अगर कोई किसी के, या किसी के वंश के बारे में कोई बुरी बात कहे तो उसे सुनकर विचलित न हों। सम्भव हो तो उनकी बातों का वहीं, तब का तब खण्डन कर दें। अभी राजधानी में राज्य के अनेक भागों से हजारों की तादाद में लोग आये हैं। सैकड़ों की संख्या में जासूस भी लगे हुए हैं। जिनका पता लग जाएगा, उन्हें जनता के लौट जाने तक बन्धन में रखा जाएगा। झूठी बातें फैलाने वाले सभी st शत्रुओं का गुप्तन्नर मानकर इसी सूत्र के आधार पर बन्धन में रखा जाएगा। इसलिए किसी को कल-जलूल बातें बोलकर खतरे में नहीं पड़ना चाहिए। अधिकारियों को कड़ी आज्ञा दे दी गयी है कि अधिकारी, सगे-सम्बन्धी आदि किसी की भी परवाह किये बिना, ऐसे लोगों को गिरफ्तार कर लिया जाए। इतना ही नहीं, जनता को आगाह करने के लिए आज इस सम्बन्ध में ढिंढोरा भी पिटवाएँगे।" बिट्टिदेव ने कहा ।
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'ढिंढोरा पिटवाने पर गुप्तचर चुप रह जाएँगे। बाद को उनका पता लगानी कठिन हो जाएगा। आखिरी वक्त कुछ गड़बड़ी मच जाए तो भीड़ को काबू में लाना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए ढिंढोरा पिटवाने के बारे में फिर से विचार करें तो अच्छा होगा । " कुँवर बिट्टियण्णा ने कहा 1
"लोगों को सतर्क कर देना अब बहुत आवश्यक है। पाँच-दस गुप्तचर न भी मिलें तो भी कोई चिन्ता नहीं। लोगों में उत्तेजना न हो, इसके लिए पहले ही उनको
ला देना उत्तम है। स्थपतिजी, आपका बहुत समय नष्ट हुआ। परन्तु दूसरा चारा न था। हमें विश्वास है कि आप किसी भी परिस्थिति में कार्य पूरा करेंगे ही। अब इस सभा को विसर्जित करेंगे। निश्चिन्त होकर कार्य को निर्विघ्न सम्पन्न करें।" कहकर ब्रिट्टिदेव उठ खड़े हुए। बाकी सब भी उठ खड़े हुए। राजपरिवार राजमहल की ओर बढ़ गया, अन्य लोग भी अपने-अपने काम पर या अपने-अपने निवासों की ओर चले गये ।
उसी दिन दोपहर के वक्त सिन्दगेरे से महाराज बल्लाल की पत्नियों पद्मलदेवी,
पट्टमहादेवी शान्तला भाग चार 23