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________________ में हमारे राज्य के महासन्निधान विरुद स्वीकार करेंगे। आज का दिन पोय्सल इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखने योग्य है। हमारे प्रभु ने सिंहासनारूढ़ होकर इन दस वर्षों के अन्दर हमारे इस राज्य के चारों ओर की सारी विघ्न-बाधाओं का निवारण ही नहीं किया, उन्होंने महत्त्वपूर्ण विजय भी प्राप्त की है, हममें से बहुतों को यह मालूम है। परन्तु मैं सभी लोगों के लिए यह जानकारो संक्षेप में दे रहा हूँ । चोल राजा कन्नड़ राज्य गणनामी को अपने भी करने मरता पर अनाचार कर रहे थे । चोलराज से यहाँ आये आचार्यश्री को आश्रय जो दिया, यह चोलराज के लिए असन्तोष का कारण बना है, यह सुनने में आया है। इसीलिए इस तरह के संकट चारों ओर उठ खड़े हुए। हमारे सन्निधान ने उन्हें परास्त कर उनके केन्द्र तलकाडु को कब्जे में कर लिया, इससे सम्पूर्ण गंगबाड़ी प्रदेश पोय्सल राज्य में शामिल हो गया है। इस विजय के प्रतीक के रूप में महाराज ने 'तलकाडुगोंड' विरुद धारण किया था। अब श्री आचार्यजी के आशीर्वाद के साथ प्रजा के सम्मुख अन्य विरुदावली धारण करेंगे। हम विश्वास करते हैं कि प्रजा इससे बहुत प्रसन्न होगी।" इतना कहकर वे कुछ रुक गये। सभामण्डप तालियों से गूंज उठा। फिर बोले, "इसी तरह दो वर्ष से भी अधिक समय तक युद्ध में निरत रहकर हमारे सन्निधान चालुक्यों की समवेत शक्ति को दबोचकर, विजय पर विजय पाते ही गये हैं। कांची, नीलम्बवाड़ी, उच्चंगी, हातुंगल, इनको भी शामिल करने से अब नयी विरुदावली धारण करने जा रहे हैं। विरुदावली क्रमशः इस प्रकार है-तलकाडुगोंड, कांचीगोंड, आदियम-हृदयशूल, नरसिंहवर्म-निर्मूलक । आचार्यजी से प्रार्थना है कि इस तरह विरुद-विभूषित सन्निधान को. आशीर्वादपूर्वक यह नवरत्न जड़ित खड़ग, स्वतन्त्र पोय्सल राज्य के संरक्षण के उद्देश्य से, उन्हें भेंट करें।" ___ आचार्यजी आसन से उटे, मंच पर चार कदम आगे बढ़े। उस परात में से खड्ग हाथ में लिया, आँखें बन्द की और भगवान से प्रार्थना कर. आशीर्वाद के साथ उसे महाराज को दिया। महाराज ने झुककर प्रणाम किया और विनीत होकर उसे स्वीकार किया। आचार्यजी आशीर्वाद देकर अपनी जगह बैठ गये । बिट्टिदेव ने एक बार खड्ग चमकाया और कहा, "खड्ग स्वीकार करने का अर्थ है उत्तरदायित्व स्वीकार करना। सम्मिलित नये प्रदेशों की प्रजा तथा अपने इस राज्य की प्रजा, इन दोनों में बिना किसी तरह के भेदभाव के, एक-सी सुरक्षा की व्यवस्था यह राज्य करेगा। यह खड्ग इसी का प्रतीक है। इसीलिए हमने कहा, खड्ग स्वीकार करना उत्तरदायित्व को स्वीकार करना है। अब रहीं विजय और विरुदावली की बात । यह विजय प्राणों की परवाह न कर मेरे साथ लड़ने वाले बोर सैनिकों की, जिन्होंने युद्ध-भूमि में हमें विजय दिलाकर स्वयं वीरगति प्राप्त की, और जो विजयी होकर हमारे साथ लौटे उन योद्धाओं की विजय है। इस विरुदावली को प्राप्त करने का पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 121
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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