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________________ हो रही थी। 'पोय्सल भूप घर-घर का दीप' यह बात वेलापुरी के विषय में चरितार्थ हो रही थी। मुहूर्त गोधूलि के समय का था, इसलिए राजपरिवार को उसकी प्रतीक्षा करनी थी। अतः वे एक मण्डप में कुछ देर के लिए ठहर गये। ठीक मुहूर्त के समय दीपमालिका के प्रकाश से वेलापुरी जगमगा उठी। वाद्यघोष हुआ। प्रधान गंगराज ने हस्त-लाघव देकर महाराज को झुककर प्रणाम किया और स्वागत किया। रानो बम्मलदेवी, पद्रमहादेवी तथा दोनों अन्य रानियों के साथ सम्मिलित हुईं। राजपरिवार को सुहागिन स्त्रियों में सबसे बड़ी उम्र की होने के कारण हेग्गड़ानी माचिकच्चे और प्रधान गंगराज की पत्नी लक्कलदेवी ने आरती उतारी, नजर उतारी और नगर-प्रवेश के लिए रास्ता सुगम कर दिया। राजपरिवार के साथ समस्त गौरव से आचार्यजी का स्वागत भी सम्पन्न हुआ। आचार्यजी ने पट्टमहादेवीजी से पूछा, "हमारे चेन्नकेशव के स्थपति कहाँ हैं?" उन्होंने सोचा था कि नगर के बाहर ही उनसे भेंट हो जाएगी। शान्तलदेवी ने कहा, "वे पत्नी-पुत्र के साथ मन्दिर के पास ही प्रतीक्षा कर रहे होंगे।" स्वागत का कार्यक्रम बहुत ही भव्य था। वेलापुरी दीपमालिका से जगमगा रही थी। उसे देखकर अच्चान को लगा कि वे किसी नक्षत्रलोक में पहुँच गये हैं। जलनेजलाने वाली अग्नि यदि प्रकाश में परिवर्तित हो जाए तो क्या बन जाती है, इसका प्रत्यक्ष ज्ञान अच्छान को हो गया। मन्दिर के द्वार पर वह यात्री दिखाई पड़ा तो भी आचार्यजी उसे पहचान न सके। जब पति-पत्नी और पुत्र तीनों ने एक साथ प्रणाम किया तब कहीं वह उन्हें पहचान पाये। फिर हँसकर बोले, "पट्टमहादेवीजी ने आपमें बहुत परिवर्तन ला दिया है। पहचानना भी मुश्किल है।" "सब भगवान की कृपा है। आचार्यजी का आशीर्वाद है। पट्टमहादेवीजी की उदारता है। यह मेरी धर्मपत्नी लक्ष्मी है, यह हम दोनों के पुराकृत पुण्य का सुफल है मेरा पुत्र डंकण।" जकणाचार्य ने परिचय दिया। यह सुनकर सबको सन्तोष हुआ। इतने में तिरुवरंगदास पूर्णकुम्भ आदि के साथ, "रास्ता, रास्ता" चिल्लाता हुआ आया। राज-परिवार के साथ ही तो आया था। सब चकित थे कि वह अन्दर कब आ गया। उस समय यह सब पूछ भी नहीं सकते थे। मन्दिर के प्राकार पर दीपमालिका जगमगा रही थी। आचार्यजी और राज-परिवार पूर्ण श्रद्धा के साथ मन्दिर की परिक्रमा कर आये 1 फिर मन्दिर में प्रवेश किया। चेन्नकेशव भगवान् सर्वालंकार से भूषित थे। यथाविधि पूजा-सम्पन्न हुई। आचार्यजी की इच्छा के अनुसार, उनके ठहरने की व्यवस्था मन्दिर के अहाते में ही की गयी थी। उन्हें वहाँ ठहराकर राजपरिवार राजमहल में चला गया। जकणाचार्य फिर पट्टमहादेवो शान्तला : भाग चार :: 115
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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